कविता

भारत रत्न की कतार

हमारे आपके जीवन मेंबहुत बार ऐसा होता हैकि हम अपने हालातों परिस्थितियों सेनिराशा के भंवर में फंस जाते हैंलाख हौसलों के बाद भी हारने लगते हैं।उम्मीदों की किरणें भी ओझल होने लगती हैं,कोई कितना भी समझाया हैदिमाग में घुस तक नहीं पाती है,और हम भड़क जाते हैं उसी परजो हमें हौसला देने का प्रयास करता हैवो हमें शुभचिंतक से ज्यादा तब दुश्मन लगता हैऔर तब हम भड़क जाते हैं।उसे अपमानित करने का प्रयत्न भी करते हैंसाथ ही उसको ही नसीहत देने लगते हैं,दूसरों को समझाना बड़ा आसान हैपर खुद पर जब पड़ता है तबयही समझना सबसे मुश्किल होता है।वास्तविकता से मुंह मोड़ना कठिन हैक्योंकि जीवन का सच भी तो यही है।अब यह हम पर आप पर निर्भर हैकि हम अपने हालातों परिस्थितियों से लड़ते हैं,या अपना जीवन हार जाते हैंअपनों को नासूर सा जख्म दे जाते हैं,जब गुमराह होकर अपना जीवन छोड़ जाते हैं,और तब कायर ही नहीं बेवकूफ भी कहलाते हैंक्योंकि हम जीवन के झंझावातों से जूझने का जज्बा नहीं दिखा पाते हैंजीवन को पीठ दिखा जाते हैं,शायद ऐसा करके हम आपभारत रत्न की कतार में आ जाते हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

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