कविता

हिंदी की पदोन्नति का सपना

एक सपना जो हम सबपिछले छिहत्तर सालों से देख रहे हैं,बदले में लालीपाप से खुश हो रहे हैं।बड़ी मशक्कत के बाद तोहिंदी राजभाषा ही बन सकी।हम सब भी अभी तक बड़ा खुश थे,क्योंकि राजभाषा और राष्ट्रभाषा का अंतर हम सब शायद समझ नहीं पा रहे थेया समझना नहीं चाहते थे,इसीलिए तो मुंह में मक्खन जमाए बैठे थे।पर अब हमारी अक्ल के दरवाजे खुलने लगे हैं,राजभाषा और राष्ट्रभाषा का अंतर हम समझने लगे हैं।अब हम राष्ट्रभाषा हिंदी के सपने देखने लगें हैंखुलकर आवाज़ भी उठाने लगे हैं,पर लगता है कि हमारी आवाजनक्कारखाने में तूती की आवाज साबित हो रही हैया जिम्मेदारों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है।पर अब हम ईमानदारी से सपने देखने लगे हैंकि वो दिन अब दूर नहीं हैजब हिंदी की पदोन्नति हो जायेगीऔर हिंदी राजभाषा से राष्ट्रभाषा का गौरव पा जायेगीहम सबके सपनों को मंजिल मिल जाएगी।

एक सपना जो हम सब

पिछले छिहत्तर सालों से देख रहे हैं,

बदले में लालीपाप से खुश हो रहे हैं।

बड़ी मशक्कत के बाद तो

हिंदी राजभाषा ही बन सकी।

हम सब भी अभी तक बड़ा खुश थे,

क्योंकि राजभाषा और राष्ट्रभाषा का अंतर 

हम सब शायद समझ नहीं पा रहे थे

या समझना नहीं चाहते थे,

इसीलिए तो मुंह में मक्खन जमाए बैठे थे।

पर अब हमारी अक्ल के दरवाजे खुलने लगे हैं,

राजभाषा और राष्ट्रभाषा का अंतर हम समझने लगे हैं।

अब हम राष्ट्रभाषा हिंदी के सपने देखने लगें हैं

खुलकर आवाज़ भी उठाने लगे हैं,

पर लगता है कि हमारी आवाज

नक्कारखाने में तूती की आवाज साबित हो रही है

या जिम्मेदारों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है।

पर अब हम ईमानदारी से सपने देखने लगे हैं

कि वो दिन अब दूर नहीं है

जब हिंदी की पदोन्नति हो जायेगी

और हिंदी राजभाषा से राष्ट्रभाषा का गौरव पा जायेगी

हम सबके सपनों को मंजिल मिल जाएगी। 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921