हिंदी से हम
हिंदी से हम
हम से हिंदी
हम नहीं किसी भाषा से कम।
माता जिसकी
संस्कृत पावन
तन देवनागरी का प्यारा।
जननी ने दी
घोटी निज पय
बहती मुख से गंगा धारा।।
लिखते जैसा
बोलें वैसा
क्यों हीन भाव भरते हैं हम।
प्रति शब्द -शब्द
भारती -ज्ञान
गुंजित करती शारदे मात।
संस्कार युक्त
हिंदी अपनी
वह गूँज रही निशि- दिवस सात।।
हिंदी हिंदू
यह हिंद देश
तीनों का पावन सुर संगम।
रोना गाना
मुस्कान हँसी
सपने देखें हम हिंदी में।
सावन फागुन
पावस वसंत
रहते हिंदी की बिंदी में।।
होली रोली
चंदन वंदन
दीपों से तारे रहे सहम।
तुलसी या कवि
सूर की यही
चरित -काव्य पहचान बनी है।
पंत निराला
मीराबाई
घनानंद रसराज सनी है।।
युग बदला है
बढ़ती हिंदी
चला लेखनी रच गीत ‘शुभम्’।
हमें नहीं है
बैर किसी से
किंतु नहीं अपमान सहेंगे।
हिंदी बोलें
हिंदी में लिख
हिंदी को निज मातु कहेंगे।।
जूझेंगे हम
ए बी सी से
आए आगे यदि हो दम।
— डॉ.भगवत स्वरूप ‘शुभम्’