गलतियां
यह शब्द अक्सर सुनाई देता है। परिवार के फलाना सदस्य ने ये गलती की, मुहल्ले में उसने गलती की, ऑफिस मे भी वह गलत था। किसी को गलत कह देना बहुत आसान सा दिखता है। परन्तु जब भी किसी की गलती पर चर्चा होती है ,तो कुछ लोग कथित गलती को गलत और कुछ लोग गलती को गलत न कहते हुए, अनेक तर्क, विवाद करेगें। अगर बात कोर्ट तक चली गईं,तब तो दोनो तरफ से वकीलों की फौज़ दलीलों के साथ खड़ी मिलेगी। अनेक बार तो लोग ,गलत को गलत कहने से कतराते मिलेंगे। कारण कई हो सकते है । इस प्रकार बहुत बार गलत वा सही का कुछ पता ही लगता नहीं और बलवान, धनवान, बाहुबली ,पहुंच वाले लोग समाज में सही , अच्छे, महान, सम्मानित होने का कवच पहने घूमते रहते है। अतः गलती रूपी संज्ञा पर गहन विचार वा विश्लेषण करने पर हमने ठान ली। हर कथित गलती के कारणों वा परिस्थितियों पर विचार भी किया तो पता चला कि गलती को गलत कहने के लिए
१) उस कथिक गलत कार्य करने/ गलत बोलने से कुछ लाभ प्राप्त करने वाले वाला,यदि वह स्वम है, या कोई उसका परिचित, रिश्तेदार है, तो यह गलती जानबूझ कर किया जाना माना जाए, और गलती को गलती ही कहा जाना चाहिए। यदि उस कथित गलत करने/ बोलने से, उसे या उसके साथी, रिश्तेदार को कोई लाभ नहीं होता है, तो उसे एक गलत निर्णय कहा जाय । किसी भी एक परिस्थिति में लिया गया कोई निर्णय, उस समय , उस व्यक्ति की मानसिक स्थिति, बौद्धिक स्तर, आर्थिक स्थिति , वा स्थानीय हालत में सर्वत्तम/ सुगम मार्ग होता है। अतः किसी के निर्णय पर चर्चा करने का कोई प्रश्न नहीं उठता। चूकी सभी व्यक्तियों की मानसिक स्थिति, बौद्धिक स्तर, स्थानीय हालत, आर्थिक स्थिति हर पल बदलती रहती है। और हर व्यक्ति का निर्णय एक सामान परिस्थिति में अलग अलग हो सकता है। अतः हर निर्णय व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है। स्थिति बदल जाने पर उसी व्यक्ति का निर्णय बदल जाया करते है।
२) अतः किसी गलती को गलत कहना या एक खराब निर्णय कहना , आप को तय करना होगा। Error/ mistake और error of judgement में अंतर देखना आवश्यक है। सामान्य रूप से एक गलत निर्णय ही हमें अथवा समाज को परेशान करता है। अथवा पीछे डकेलता है। जिसके लिये कथित/ आरोपित का बौद्धिक स्तर विचारने वा सुधारने पर प्रयास करने ज़रूरत हैं या निम्न बौद्धिक स्तर होने की समीक्षा करने की आवश्कता होनी चाहिए।
३) अब तक की चर्चा के बाद, यह स्पष्ट हो जाता है, कि कथित कार्य / शब्दो को गलत कहा जाय या एक गलत निर्णय कहा जाय। परन्तु दोनो, गलत कार्य / गलत शब्दों या गलत निर्णय से दूर गामी परिणाम होते है। गलत कार्य / गलत शब्दों से कथित व्यक्ति या उसके सम्बन्धी लाभान्वित होते है इसे एक दंडनीय अपराध माना जाए और प्रत्येक गलत निर्णय से समाज को नुकसान होता है। जिसके कारणों की समीक्षा की जानी चाहिए और यथा संभव सुधारों के प्रयास निरन्तर किया जाना चाहिए।
४) आज अपनी अथवा अपने समाज की वर्तमान स्थिति पर ध्यान देने पर पता लगेगा, कि अधिकांश अवसरों पर हमें गलत निर्णय से नुकसान हुआ है,और जिसका मुख्य कारण पूर्व में लिए गए गलत निर्णय कर्ता का निम्न बौद्धिक स्तर रहा है। अतः इसी लिए शायद समाज में पढ़ाई लिखाई/ विद्या अर्जन पर बल दिया जा रहा है। विद्या का जितना स्तर ऊंचा होगा, वही भविष्य में एक अच्छे समाज को जन्म देगा।
५) एक अच्छे बौद्धिक समाज के लिए , विद्या को अनिवार्य किया जाय और एक न्यूनतम शिक्षा स्तर को हर स्तर के लिए अनिवार्य किया जाय, हां,पर शिक्षा अर्जन ईमानदारी के साथ हो ।
६) एक शिक्षित समाज में ही लोग, एक गलती या गलत निर्णय में अंतर समझ सकते है। और सभी स्तर से गलत निर्णय की संभावना को दूर किया जाय तथा गलतियों पर प्रभावी रूप से शीघ्र दंड देने प्रक्रिया हो।
७) अगर कोई पूर्व में कोई गलत संस्थागत निर्णय हुआ है, तो उस संस्था में निर्णायक पद तक कथित व्यक्ति को पहुंचाने के लिए सभी ज़िम्मेदार लोगों का निर्णय पक्षपात पूर्ण ( गलत नहीं) माना जाएगा, जिसके दुष्परिणाम सभी को भुगतने होंगे। अतः संस्थागत गलत निर्णय की संभावना को कम करने के लिए, किसी पद के लिए , एक शैक्षिक आहार्यता/ अनुभव अनिवार्य होना चाहिए। तथा व्यक्तिगत गलत निर्णय को कम करने के लिए बौधिक स्तर ऊंचा होना चाहिए , जिसके लिए शिक्षा ही एक माध्यम है।
८) शिक्षा चाहें किसी क्षेत्र में ली जाए, कुछ समय बाद, शैक्षिक संस्थान में पढ़ाई गई ,वस्तु विशेष तो ध्यान से उतर जाएगा,परन्तु एक बौद्धिक स्तर ही शिक्षित व्यक्ति की पहचान बना रहेगा, जो उसे जीवन में आगे ले जाता है,और अमुक व्यक्ति को सामान्य से अलग बनाए रखेगा। जिसके सभी निर्णय समाज के लिए लाभकारी होंगे
अभी तक हमारा विश्लेषण केवल एक गलती और एक गलत निर्णय पर केंद्रित रहा। परतु हर व्यक्ति को अपना ही निर्णय (जो किसी समय एक सबसे अच्छा उपाय लगता था) ,समय बीत जाने के बाद अक्सर वही निर्णय ,उसी व्यक्ति को गलत लगने लगता है, चू कि समय के साथ परिस्थितियां बदल जाने के कारण ,आप के अपने परिवार के सदस्य ही (भले हि आपकी उम्र का लिहाज करके खुले तौर पर ) आप द्वारा पूर्व में लिए निर्णय को गलत न कहे , परन्तु कोई भी आप के किसी पूर्व के निर्णय की कभी प्रसंशा करता नही दिखेगा। उम्र के एक पड़ाव पर आप को स्वयं एक आत्मा ग्लानि सी होने लगेगी कि शायद आप ने अपने जीवन में कोई निर्णय अच्छे नहीं लिए और आप गलत थे। इस तरह के भाव आने पर व्यक्ति विमुक्त होने लगता है। परन्तु गलतियां और गलत निर्णय ही जीवन के अभिन्न अंग होते है।