गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

क्या तुझे भी मुझी से बता इश्क़ है
हर किसी को मिले जो मज़ा इश्क़ है

प्यार हो देख दोनों तरफ से सुनो
एकतरफ़ा रहे जो तो क्या इश्क़ है

इश्क़ में हो रही खूब तड़पन , कसक
रूह तक धँस गया ये छुरा इश्क़ है

राह में बिछ रहे क॔टक यहाँ अभी
आज मैंने तुझे ये कहा इश्क़ है

प्यार तो ये शर्तों पर टिका ही नहीं
ख़ुशनुमा बढ़ चला ये अभी इश्क़ है

देखते ये रहे रूठता ही चला
इश्क़ बेदर्द है बेवफा इश्क़ है

तुम वफादार होकर रहो तो सुनो
जान लो बात ये तुम ख़ुदा इश्क़ है

— रवि रश्मि ‘अनुभूति