ग़ज़ल
पूछो कोई ग़म है क्या?
फिर देखो मरहम है क्या?
हंसते चेहरों में ढूंढो,
आँख किसी की नम है क्या?
इक दूजे से सब बढकर,
कोई किसी से कम है क्या?
बातें दम की करते हो,
सच में उतना दम है क्या?
दूर से पानी दिखता जो,
मृगतृष्णा है, भ्रम है क्या?
फूल सभी हैं मुरझाए,
पतझड़ का मौसम है क्या?
शेर कहो पर ‘जय’ देखो,
उला, सानी सम है क्या?
— जयकृष्ण चांडक ‘जय’