लघुकथा

अंतिम विदाई

आज घर की दहलीज छोड़ते हुए सुमित्रा की आंखें मानो पथरा गई है। आंखों से उसके आंसू का एक कतरा तक न निकला …! जिंदगी के जिन लम्हों के लिए लड़की लाखों सुनहरे सपने संजोए रहती है,वो सपने तो कब के मिट्टी में मिल गए।

आज घर की दहलीज छोड़ते हुए सुमित्रा की आंखें मानो पथरा गई है। आंखों से उसके आंसू का एक कतरा तक न निकला …! जिंदगी के जिन लम्हों के लिए लड़की लाखों सुनहरे सपने संजोए रहती है,वो सपने तो कब के मिट्टी में मिल गए।

  अभी मां -पिताजी के चिता की आग ठंडी भी पड़ी नहीं थी कि भाई -भाभी ने एक साठ साल के बुड्ढे साथ उसकी शादी तय कर दी। वैसे उसकी उम्र भी कमसिन नहीं थी, लेकिन एक बुढा उसका जीवन साथी बने उसने सपने में भी नहीं सोचा था।

उसे अपनी शादी की विदाई अपनी अंतिम विदाई के जैसी लग रही थी ….!

—  विभा कुमारी नीरजा 

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P