कविता

ईर्ष्या से हमेशा दिल जलाया

जीवन में जो कुछ अच्छा मिला

दिया न उस पर कभी ध्यान

चिंता में रहा उसकी जो नहीं मिला

सोच सोच कर होता रहा परेशान

बहुत कुछ दिया ऊपर वाले ने

पर हमेशा उसकी ही की बुराई

दूसरों की खुशी देखकर जलाया कलेजा

गिर गया उसी में जो दूसरों के लिए खोदी थी खाई

ईर्ष्या रही मन में हमेशा दिल जलाता रहा

दूसरों के बारे में सोचकर मन को उलझाता रहा

अपने मन के अंदर झांक कर कभी देखा नहीं

दूसरों को उपदेश सुनाता रहा

जो जिसको मिला जीवन में

उससे यदि आदमी संतुष्ट हो जाता

सुखी रहता उम्र भर वह

कोई कष्ट उसके नज़दीक न आता

ईर्ष्या से हमेशा दिल जलाया

जो अच्छा मिला था वह भी गंवाया

जलते रहे मन ही मन दूसरों को देखकर

सोचो ईर्ष्या करके हमने क्या पाया

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र