भाषा-साहित्य

हिंदी भाषा के समक्ष चुनौतियां

हिंदी भारत की राष्ट्र भाषा होने के साथ जनभाषा भी है। यही वह भाषा है जिसने कश्मीर से कन्याकुमारी तक संपूर्ण भारत को एक सूत्र में बांध रखा है।किंतु आज जन की भाषा हिंदी के समक्ष अनेक चुनौतियां हैं। उसमें सबसे पहले है —-

अंग्रेजी के प्रति मोह — हिंदी अत्यंत समृद्ध भाषा है पर इतनी स्मृद्धता के बाद भी बातचीत में इंग्लिश शब्दों के प्रयोग का मोह हम छोड़ नहीं पाते। बात बात में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग हमारी मानसिक दरिद्रता, भाषीय गुलामी और अपनी भाषा के प्रति उदासीनता का परिचायक है। राष्ट्र भाषा घोषित होने के बावजूद हिंदी को लेकर हम हीन भावना से ग्रस्त रहते हैं और ऐसी भाषा को गुरुर के साथ उच्च स्तर पर पहुंचा रहे हैं जो शोषक की ,रौब की,आतंक की भाषा रही है।
अंग्रेजी के प्रति यह मोह गुलाम मानसिकता का द्योतक है।

भाषा का विकृत होता रूप

इसके प्रभाव के फलस्वरूप भाषा का स्वरूप विकृत हो रहा है।व्यक्ति अभिव्यक्ति का मुख्य तत्व राष्ट्रभाषा और मातृभाषा थी वो ही उपेक्षित और नगण्य हो गई।विद्यार्थियों अधिकारियों के साथ सामान्य जन की सहज साधारण भाषा में भी अंग्रेजी शब्दों की भरमार हो गई है।ऐसी स्थिति में व्यक्ति समझ ही नहीं पाता कि वो हिंदी बोल रहा है या अंग्रेजी।वह एक खिचड़ी, बिगड़ी,अशुद्ध और कामचलाऊ भाषा के दम पर सब कुछ पा लेना चाहता है। ये मानसिकता हिंदी भाषा के उपयोग और विकास को अवरूद्ध कर हमारी पहचान को मिटा रही है।

हिंदी हीनता का बोध — हिंदी भाषा के सामने सबसे बड़ी चुनौती मातृ भाषा को हीन समझने वालों से ही है। लेखक श्री राम परिहार जी का कहना है ,भाषा कोई भी बुरी नहीं होती विभिन्न भाषाओं का ज्ञान होना बहुत अच्छी बात है, कभी कभी आवश्यक भी। पर दिक्कत तब होती है जब अंग्रेजी हिंदी के सर पर सवार हो उसे हीनता का बोध कराती है । गलत सलत हिंदी बोल कर भी व्यक्ति गौरवांवित महसूस करता है और सही विशुद्ध हिंदी हीनता के बोझ तले दबती जाती है।यही कारण है कि इतनी समृद्ध भाषा होने के बावजूद हमारी हालत कंगालों जैसी है।
अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई, अंग्रेजी से संबद्ध आधुनिकता का बोध और विदेशी संस्कृति के प्रति आकर्षण हिंदी भाषा के समक्ष विकट चुनौती है। अंग्रेजी के प्रति यह मोह रुझान और झुकाव न सिर्फ महानगरों बल्कि गांवों और कस्बों तक भी फैल रहा है जिससे हिंदी की अस्मिता पर संकट मंडरा रहा है और उसका विकास बाधित हो रहा है।

— डॉ ममता मेहता

डॉ. ममता मेहता

लेखन .....लगभग 500 रचनाएँ यथा लेख, व्यंग्य, कविताएं, ग़ज़ल, बच्चों की कहानियां सरिता, मुक्ता गृहशोभा, मेरी सहेली, चंपक नंदन बालहंस जान्हवी, राष्ट्र धर्म साहित्य अमृत ,मधुमती संवाद पथ तथा समाचार पत्रों इत्यादि में प्रकाशित। प्रकाशन..1..लातों के भूत 2..अजगर करें न चाकरी 3..व्यंग्य का धोबीपाट (व्यंग्य संग्रह) पलाश के फूल ..(साझा काव्य संग्रह) पूना महाराष्ट्र बोर्ड द्वारा संकलित पाठ्य पुस्तक बालभारती कक्षा 8 वी और 5वी में कहानी प्रकाशित। पूना महाराष्ट्र बोर्ड 11वीं और 12वीं कक्षा के लिए अभ्यास मंडल की सदस्य प्रस्तुति ..सब टीवी पर प्रसारित "वाह वाह क्या बात है" और बिग टीवी पर प्रसारित "बहुत खूब" कार्यक्रम में प्रस्तुति दूरदर्शन आकाशवाणी से काव्य पाठ संगोष्ठियों शिबिरो में आलेख वाचन ,विभिन्न कविसम्मेलन में मंच संचालन व काव्य पाठ दिल्ली प्रेस दिल्ली तथा राष्ट्रधर्म लखनऊ द्वारा आयोजित व्यंग्य प्रतियोगिता में सान्तवना ,द्वितीय व प्रथम पुरस्कार ।