गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

याद है हर बात मुझको आज तक उस शाम की
तुम दिलाते ही रहे थे याद मुझको नाम की

एक दिन तब हो गया था प्रेम दिल में अंकुरित
याद आयी तब मुझे तो एक ऐसे धाम की

राधिका मैं थी बनी तब गोपियाँ छेड़ा करें
एक छवि उभरी तभी थी देख लो उस श्याम की

टोकतीं पनघट न जाना देख ले कोई तभी
सोच तब तू जी सके जो ज़िंदगी बदनाम की

देख गलियाँ कह रही हैं आ सके जो तू इधर
आज सुध ले तू अभी ही देख देव मुकाम की

हैं बिखरते आज तो अरमान सारे इस गली
आ इधर तू इस डगर चल ये नहीं है आम की

लक्ष्य साधे भक्ति कर मन देखना सुख तब मिले
जी सकेगा तब यहाँ पर ज़िंदगी आराम की

देख अब रब तो रहेगा ही समाया रूह में
जो कभी मिलता नहीं खोज उस गुमनाम की

मन उभरती ही रहे अब भक्ति की पावन शक्ति
हो सफल तब जी सके तू ज़िंदगी विश्राम की

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’