कविता

समीर शक्ति             

हे! समीर शक्ति तुम कैसी हो, तुम मुझको क्यों नहीं दिखती हो।                        

सागर पहाड़ पर्वत पानी, सबको तुम कैसे दिखती हो।     

एक देश से जा करके, तुम दूर देश मे बहती हो।   

पक्षियों के पंखो पर तिरकर, तुम कितनी शीतल बहती हो। 

तुम जल मे मिलकर रहती हो, फिर भी मै नही समझ पाता।                       

तुम कितनी मन की कोमल हो, हर जीव तुम्हीं को भा जाता।                        

 हे समीर! शक्ति तुम इतनी कोमल हो, फिर भी इतनी बलशाली हो।                 

हे! समीर शक्ति तुम कैसी हो,मुझे क्यों नही दिखती हो।                  

पेड़ो के पत्तों से तिरती डालो- डालो को चूम – चूम। फिर झोंको मे बहती हो तुम झूम – झूम।।             

तब क्रोधित सी तुम लगती हो  हे! समीर शक्ति तुम कैसी हो,मुझको क्यो नही दिखाती हो।                       

बस एक बार तुम बतला दो, कि नजर नही क्यों आती हो।

हे! समीर शक्ति तुम कैसी हो,मुझको क्यो नही दिखती हो।। 

गर्मी का मौसम आता है, तुम सबके मन को भाती हो। 

माता सी है तेरी ममता, तुम जग मे बहार लाती हो।   

हे आदिशक्ति! हे अमरपरी ! तुम मुझको क्यों नही दिखती हो। 

ये समीर शक्ति तुम कैसी हो, तुम मुझको क्यों नहीं दिखती हो।।                     

— प्रशांत अवस्थी “रावेन्द्र भैय्या”

प्रशांत अवस्थी 'रावेन्द्र भैय्या'

आत्मज- श्रीमती रेखा देवी एवं श्री शुभकरन लाल अवस्थी. जन्मतिथि - 18 सितम्बर 2005. जन्म स्थान - ग्राम अफसरिया ,महमूदाबाद सीतापुर उ.प्र. शिक्षा- डी.एड.स्पेशल एजुकेशन में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं, मोबाइल नंबर -9569726127. G-mail- theprashantawasthis.pa@gmail.com