धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

गीता के अनुसार जरूरत पडने पर युद्ध करना भी धर्म है

धर्म हो या अध्यात्म हो या योग हो या अन्य कोई ऐसा क्षेत्र हो कि जो भौतिक जगत् से परे दिव्यता या चेतना से जुडा हुआ हो – इनकी आड लेकर भ्रम फैलाया जाना सहज संभव है! इसी का फायदा उठाकर साधना से खाली धूर्त किस्म के लोग सामान्य जन को लूटने का काम सहजता से करने में सफल होते हुये देखे जा सकते हैं! क्योंकि धर्म, अध्यात्म, चेतना व योग आदि कोई स्थूल इंद्रियों से जाने जाने वाले विषय तो हैं नहीं इसलिये चालाक लोगों को अपनी मनमानी करने का मौका मिल जाता है! इनमें अनेक तो ऐसे लोग हैं जिन्हें सनातन धर्म के शास्त्रों का सामान्य ज्ञान तक नहीं है लेकिन वो भी अपने आपको उच्चकोटि का सिद्ध, संत, स्वामी, संन्यासी, योगी, संदेशवाहक आदि प्रचारित करके जनता जनार्दन में स्थापित कर लेते हैं! ऐसे नकली लोगों की भारत सहित समस्त संसार में भरमार है! कोई चुनौती दे तो कैसे, किस तरह व किस बलबूते पर? ऐसे लोगों के घनिष्ठ संबंध अक्सर वोट बटोरू नेताओं के साथ होते ही हैं! मैं तुम्हें अपने मूर्ख भक्तों के वोट दिलवाऊंगा और तुम बदले में मेरे गैरकानूनी अवैध कब्जों व धींगामस्ती पर पर्दा डालने में मेरी ढाल बनकर खड़े होते रहना! इसी सहुलियत का फायदा उठाकर समस्त संसार में हजारों नकली गुरु, मसीहा, फकीर, तारणहार पैदा हो गये हैं! दिनोदिन इनकी व इनके अंधानुयायियों की भीड़ बढती जा रही है! इनकी भीड़ का बढते जाना संसार में दर्शनशास्त्र विषय के लुप्त होते जाने का संदेश है! लेकिन अपनी मोटी मोटी सैलरीज के नशे में दर्शनशास्त्र विषय के शिक्षक ,प्रोफेसर, अकादमिक अधिकारी और अपने आपको दर्शनशास्त्र विषय का ठेकेदार मानने वाले तथाकथित बुद्धिजीवी लोग इस सच्चाई से मुंह फेरकर गहरी निद्रा में सो रहे हैं!
श्रीमद्भगवद्गीता जैसा कालजयी ग्रंथ भी ऐसे व्यापारी  किस्म के लोगों  की पाखंडलीला से अछूता नहीं रह पाया है!ये लोग इस ग्रंथ के संबंध में भी अपनी ऊलजलूल हरकतें करने से नहीं चूकते हैं! गीता के उपदेश,गीता की जयंती, गीता ग्रंथ की व्याख्या, गीतोपदेश स्थल के निर्धारण, गीता ग्रंथ के प्रकाशन, गीता के उपदेश पर एकाधिकार की घोषणा, गीता के उपदेश की आड में व्यापार करना, गीता को केंद्र में रखकर संप्रदाय स्थापना, गीता के नाम पर राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय गौष्ठियां आयोजित करके राजनीतिक आदि स्वार्थसिद्धि करना तथा गीता को केवल अध्यात्म का ग्रंथ घोषित करना आदि धडल्ले से चल रहा है! आश्चर्यमिश्रित पीड़ा तो तब होती है जब हमारे बडे बडे कहे जाने वाले धर्मगुरु इसे ही गीता की शिक्षाओं का प्रचार प्रसार कहने पर जुटे हुये हैं! वास्तव में ये लोग गीता के उपदेश की महिमा, गरिमा व परिमा को कलंकित ही कर रहे हैं!
       पौराणिक भाई प्रतिवर्ष गीता जयंती मनाते हैं! दुनिया में शायद गीता अकेला ग्रंथ है कि जिसकी जयंती मनाई जाती हो! लेकिन हमारे धर्मगुरु आज तक गीता जयंती मनाने की दिनांक पर एकमत सहमत नहीं हो पाये हैं! कोई कुछ कहता है तो कोई कुछ अन्य ही कहता है! जब गीता जयंती की दिनांक तक निश्चित करने पर धर्मगुरु एकमत सहमत न होते हों तो उनसे गीता के उपदेश के प्रचार व प्रसार की आशा करना एक धोखा ही सिद्ध हो सकता है! जब ये धर्मगुरु किसी ग्रंथ की दिनांक तक पर एकमत सहमत न हों तो ये जनता जनार्दन को गीता के उपदेश पर किस तरह से एकमत सहमत कर पायेंगे? इससे इनके मन की चंचलता, विकलता व निष्फलता का भी पता चल जाता है! ऐसे लोग अपने सांप्रदायिक लाभ के लिये सनातन धर्म को हानि पहुंचाने से भी नहीं चूक रहे हैं!
अब की बार भी सरकार व कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड 23 दिसम्बर को गीता जयंती मना रहे हैं लेकिन पंडित लोग 22 दिसम्बर को गीता जयंती मनाने की घोषणा कर रहे हैं! इन लोगों की इस तरह की मूढताओं से सनातन धर्म दुनिया की नजरों में उपहास का विषय बनकर रह जाता है!सनातन धर्म व संस्कृति के  वास्तविक जानकारों को इस तरफ ध्यान देना चाहिये ताकि मूढ़ लोगों की हरकतों की वजह से सनातन की बदनामी न हो! एक तरफ तो सनातन को एकमात्र धर्म बतला रहे हो तथा दूसरी तरफ इसे खुद ही एक पोंगापंथी संप्रदाय या मजहब बनाने पर तुले हुये हो! कुछ तो अक्ल से काम लो ताकि अक्ल बड़ी रहे तथा भैंस के सामने अपने आपको छोटा न देखना पडे!
हमारे कुछ अज्ञानी, अहंकारी व कट्टर सांप्रदायिक पंडितों की वजह से होली, दिवाली, दशहरा, तीज, मकर संक्रांति आदि तथा महापुरुषों के जन्म दिवस व देहत्याग दिवस भी विवादास्पद बनकर अपना महत्व खोते जा रहे हैं! जनसाधारण सनातनी किसकी बात को सत्य माने तथा किसकी बात को झूठ माने? इस प्रकार की अनिश्चितता, दुविधा व उपहास के कारण सनातनियों में मता़ंतरण को भी बढावा मिलता है!
सनातन धर्म व संस्कृति अपने मूल स्वरूप में तर्क व अनुभूति, विचार व श्रद्धा तथा विश्लेषण व संश्लेषण को एक साथ लेकर चलते हैं! लेकिन इन अहंकारी, व्यापारी व सरकारी लोगों ने सब गुड गोबर एक करके रख छोडा है! इसीलिये हर दिन  सनातन की आड में नये – नये किस्म के पाखंड, ढोंग,शोषण व बेवकूफियों को देखने का मौका मिलता है! हम दूसरों को सही धर्म, नैतिकता, मूल्य, आदर्श, दर्शनशास्त्र की शिक्षा देने के अधिकारी तभी बनते हैं जब हम स्वयं उन पर चलते हों!
           आज के संदर्भ में यदि गीता के उपदेश को ही लें तो भी उपरोक्त शंकायें  सही लगती हैं! जब शांति स्थापना के सभी प्रयास निर्रथक हो जाते हों, तब एक राजा के लिये या फिर जनसामान्य व्यक्ति के लिये भी युद्ध करके शांति, सद्भाव व व्यवस्था की स्थापना करना मुख्य कर्तव्य रुपी धर्म हो जाता है! व्यक्तिगत स्तर पर हो या पारिवारिक स्तर पर हो या संगठन स्तर पर हो या राज्य स्तर पर हो या राष्ट्रीय स्तर पर हो- सभी जगह यह उपदेश लागू होता है! यह आवश्यक है कि किसी राष्ट्र का संविधान व कानून वहाँ के नागरिकों के लिये सर्वोपरि होता है तथा होना भी चाहिये! लेकिन व्यक्तिगत, पारिवारिक,सांगठनिक,सामुदायिक आदि स्तर पर कुछ अव्यवस्था,अनैतिकता व अधर्म होने के समय संविधान व कानून के रखवाले पुलिसकर्मी आदि के पहुंचने में कुछ समय तो लग ही जाता है!ऐसे समय पर क्या अपने विरोधी या प्रतिद्वंद्वी या दुश्मन की मार को चुपचाप खाते रहना चाहिये या कि जैसे को तैसे प्रत्युत्तर देना चाहिये?जब तक संविधान व कानून जुल्म व अपराध के स्थल पर पहुचेंगे तब तक तो अपराधी लोग अपनी बहुत कुछ धींगामस्ती कर चुके होंगे! अपने बचाव के लिये हथियारों का प्रयोग करने तक की आज्ञा हमें हमारे संविधान व कानून द्वारा प्रदान की हुई है! संविधान व कानून के रक्षक इसका खूब दुरूपयोग करते हैं, यह एक अलग बात है!एकतरफा अध्यात्म की आड लेकर
गीता के अधिकांश व्याख्याकारों ने गीता के उपरोक्त युद्ध के मर्म को धूल -धूसरित करके रख छोडा है! पिछले लगभग 2000 वर्ष से हमारा भारत राष्ट्र उपरोक्त मूढता का खामियाजा भुगतता आ रहा है! लेकिन पोंगापंथी लोग इसके बावजूद भी एकतरफा रुप से अहिंसा, शांति, सद्भाव, क्षमा, अध्यात्म आदि का बेसुरा गीत सुनाकर इसे ही श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश कहकर भारतीयों को पिलाते आ रहे हैं!
ध्यान रहे कि दुनिया का कोई भी अपराधी या जुल्म करने वाला या आतंकवादी या युद्ध करने वाला व्यक्ति एकदम से शांति, सद्भाव, अहिंसा, प्रेम व करुणा की बातें बिलकुल भी नहीं मानता व समझता है! ये सभी बातें उसको बाद में ही तब समझ में आती हैं जब उससे उसी की भाषा में जवाब दिया जाता है!
      यदि कौरव शांति की भाषा समझते तो भगवान् श्रीकृष्ण पांडवों को युद्ध करने को क्यों प्रेरित करते? क्या श्रीमद्भगवद्गीता की एकतरफा शांतिवादी, अहिंसावादी, क्षमावादी व अध्यात्मवादी व्याख्याएँ करने वाले दार्शनिक,विचारक व महात्मा लोग अपने आपको भगवान् श्रीकृष्ण से भी बड़ा मानते हैं?
और यदि एकमात्र शांति, सद्भाव, अहिंसा, प्रेम, करुणा व क्षमा आदि से ही दुश्मन का हृदय परिवर्तन किया जाना संभव होता तो गांधीजी पाकिस्तानियों का हृदय परिवर्तन क्यों नहीं कर पाये? और आजकल के हमारे नेता, धर्मगुरु, योगाचार्य व गीता के रुहानी व्याख्याकार इसे सच मान रहे हों तो 1948,1965,1971 तथा कारगिल के युद्धों में पाकिस्तान के साथ यह एकतरफा शांति, सद्भाव,अहिंसा आदि का प्रयोग करके उसे धूल क्यों नहीं चटाई गई? 1962 में चीन के साथ यह प्रयोग क्यों नहीं किया गया? पंजाब, कश्मीर व पूर्वोत्तर के राज्यों में फैले आतंकवाद की समाप्ति के लिये यह प्रयोग क्यों नहीं किया गया?
वास्तविकता यही है कि गीता के उपदेश की सार्थकता इसी में है कि समय, परिस्थिति व जरूरत अनुसार शांति व युद्ध दोनों का प्रयोग किया जाना चाहिये! केवलमात्र एकतरफा रुप से शांति, सद्भाव, अहिंसा, प्रेम, करुणा व क्षमा आदि किसी भी राष्ट्र के लिये आत्मघाती सिद्ध हो सकते हैं! और हमारे लिये तो पिछली 20 शताब्दियां इसका सशक्त प्रमाण हैं! यदि हमारे पूर्वज बौद्ध मत के एकतरफा विज्ञानवाद,शून्यवाद, भिक्षुवाद आदि तथा गीता ग्रंथ की एकतरफा अद्वैतपरक,अध्यात्मपरक, ज्ञानपरक व संसारविरोधी व्याख्याओं के मोहजाल में नहीं फंसते तो भारत को सैकड़ों विदेशी क्रूर लूटेरे हमलावरों से पराजयों का सामना नहीं करना पडता! भारत को भीतरी व बाहरी खतरों व आक्रमणों से बचाने का आज भी एकमात्र रास्ता महर्षि वेदव्यास ने भगवान् श्रीकृष्ण के मुखारविंद के माध्यम से अर्जुन को कहलवा दिया था! और वह है शांति, सद्भाव, अहिंसा, प्रेम, करुणा व क्षमा का रास्ता बंद हो जाने पर अपने पौरुष व क्षत्रिय बल से दुश्मन की कमर को तोडकर उसको सबक सिखा देना! गीता का उपदेश भारत के लिये आज भी पूर्ववत् प्रासंगिक है!
— आचार्य शीलक राम

आचार्य शीलक राम

दर्शन -विभाग कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र-136119 मो. 8222913065 -- Acharya (Dr.) Shilak Ram Acharya Academy Chuliana (Rohaj) Rohtak (Haryana) Mobile : 9992885894 9813013065 8901013065 www.pramanaresearchjournal.com www.chintanresearchjournal.com acharyashilakram.blogspot.in https://www.facebook.com/acharya.shilakram https://www.jagaranjunction.com.shilakram ORCID-https://orcid.org/0000-0001-6273-2221