लघुकथा

संकल्प

“नहीं चाहिए मुझे किसी का सहारा।”

“मैं अपने बलबूते पर ‘नशा मुक्ति अभियान’ चलाती रहूंगी।

मेरे देश के युवा शक्ति को नशे की गर्त में धकेलते इन देशद्रोही तत्वों को नेस्तनाबूत करुँगी।

दृढ़ संकल्प हैं यह मेरा।”

उसके गगन भेदी आक्रोश से सबका मन व्यथित हो रहा था। 

“किसी को नहीं छोडूंगी। मेरे सत्यार्थी पति के हत्यारों को फांसी दिलवाकर रहूंगी।”

” युवाओं को नशे की गर्त में धकेलते बेईमानों को मैं छोडूंगी नहीं।”

“अंतिम सांस तक मुकाबला होगा।”

बहुत कोशिश हुई उसकी आवाज दबाने की। उसे मौन करने की। न्याय की मांग करते पति के मृत्यु देख से भी न डगमगाए। बुलंद संकल्प लिए एक अकेली लड़ती रही। धीरे-धीरे कारवां बढ़ता गया।

आज जब उसे न्याय मिला है, नशे के व्यापारियों को सजा मिली हैं, सारी दुनिया उसके साथ खड़ी है।

आत्मविश्वास से आगे बढ़ती नशामुक्ति आंदोलन की बागडोर संभाले वह आगे बढ़ी हैं।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८