कहानी

फरेब

ससुराल में अपने अस्तव्यस्त पड़े कमरे में उसने देखा, बिखरे हुए सामान के साथ किसी अन्य नारी के परिधान भी है।

पल भर के लिए वह आहत हो गयी। दरवाजे की चटखनी लगाकर टेबल की दराज में पड़े घर की मालकियत के कागज अपनी बैग में रख दिए।

अपना कीमती सामान, जेवर लेकर अपनी सहेली सौदामिनी के घर आ गयी।

बेवफा पति की करतूतों का लेखाजोखा उसने अपनी आंखों से देख लिया था और अपने मोबाइल में कैद कर लिया था।

अपने सहेली मीता के मुंहबोले भाई सुरेश की चिकनी चुपड़ी बातों में आकर उसने सुहास से शादी का निर्णय लिया था।

श्रीना के अंधत्व के कारण माता पिता ने भी बिना तहकीकात झट से हां भर दी थी।

श्रीना मम्मी पापा की इकलौती संतान थी। किसी दुर्घटना की वजह से श्रीना की आंखों पर चोट लगी थी, आंखों की ज्योति चली गयी थी।

जीवन में अंधेरा छा गया था। जितना संभव हुआ, इलाज कराए गए। पर उजियारा न हुआ।

“अंधी हो, क्या होगा दवा-दारू से?”

सुहास हमेशा हतोत्साहित करता रहता।

पढ़ने में तेज, बुद्धिमान थी वह। ऑडियो सुनकर अपनी पढ़ाई उसने जारी रखी।

परीक्षा देने पीहर आयी हुई थी। विशेष सुविधा के तहत सहाय्यक ले अच्छे नंबरों से आगे बढ़ती रही। 

मम्मी पापा के साथ बतिया रही थी कि अचानक पुरानी सहेली सौदामिनी की आवाज से चौंक गए सब।

“अरे सौदामिनी, विदेश से कब लौटी? कैसी हो बेटी?”

“श्रीना गुमसुम क्यों है? गले मिलने दौड़कर नहीं आयी अब तक?”

मम्मी ने इशारे से ही आंखों की ज्योति न होने की सूचना दी। पास बिठाकर विस्तार से सारी बातें बताई।

“तो सुहास ने श्रीना से शादी कैसे की?” सौदामिनी ने अचंभित हो पूछा।

” बेटा, श्रीना के पापा की आमदनी ज्यादा नही थी, पर मुझे अपने माता पिता से बहुत सारी धन दौलत मिली थी। मेरी तरह श्रीना भी हमारी अकेली औलाद है। सारा धन वैभव उसी का है। सुहास ने अंधी हुई श्रीना से इसी लालच में शादी की थी। श्रीना उसकी मिश्री घुली प्यारभरी बातों में ऐसे खोई कि अपना सबकुछ उसने सुहास पर वार दिया। शादी के कुछ दिनों बाद ही सुहास के तेवर बदल गए। श्रीना को सुहास का व्यवहार और अकेलापन खलने लगा। सुहास के साथ रहना अटपटा लगने लगा।

धीरे धीरे सुहास में कुछ बदलाव सा महसूस कर रही थी वह। न समय पर आना, न मीठे बोल। खा पीकर सो जाता। श्रीना के जीवन  रसहीन हो गया था।

 सौदामिनी ने उसके मन में लाखों आशादीप जला दिए। आंखों की चिकित्सक थी वह, हाल ही में अमरीका से लौटी थी, उसकी आँखों की जांच कर बताया कि वह दुबारा देख सकती हैं। नयी टेक्निक आयी है। कोशिश करने में हर्ज ही क्या है? आपरेशन करना पड़ेगा। फंड की चिंता तो थी ही नहीं। जानकारी के अभाव में ऐसा हो सकता है कभी सोचा ही नहीं। सौदामिनी ने किया आपरेशन सफल हुआ। दुबारा इस दुनिया का रंगबिरंगा रूप देख श्रीना पुलकित हो रही थी। मनचली तितली सी इधर-उधर इठलाती खूब नाची थी वह।

“वाह, कितनी सुन्दर है यह दुनिया। तीन साल में सब कुछ भुला दिया था मैंने।”

“सुहास के प्यार में डूबी हुई जो थी।” 

सौदामिनी की शरारती मुस्कान आहत, उसकी आंखों कोर से आंसू लुढ़क पड़े। कैसे बताएं वह सच्चाई?

अपने माता पिता से भी कभी उसने अपना गम नहीं बांटा। किसी से शिकायत नहीं की। लेकिन सौदामिनी ने सबकुछ जान लिया था जैसे,

“श्रीना, एक काम करोगी? आंखों की रोशनी लौट आने की बात किसी को नहीं बताओगी।” उसने धीरे से कहा।

“ससुराल में किसी को पता ही नहीं। सुहास का असली रूप बेनकाब करना ही होगा।”

आज जब कमरे की हालत देखी, पलभर में ही सच्चाई से रूबरू हो गयी।

इतना फरेब? मजबूरी का ऐसे फायदा उठाया जाता है?

घृणा और नफरत के धुंए से

अब और नहीं रहना यहां।

अपने अधिकार की लड़ाई लड़नी होगी।

वरना सुहास जैसे धोखाधड़ी करनेवाले नराधम उगते ही रहेंगे।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८