कहानी

टटू चला गया  (कहानी)

गांव का नाम भी कुछ ऐसा जो सुनने में भी अजीब सा लगता था।छोटी छोटी पहाड़ियों की टेकरी पर स्थित था । कहा जाता है कि राजाओं के ज़माने में इस गांव में राजा के घोड़ों को बांधा जाता था ।इसी गांव में तीन बौड़ियाँ थी जिनका पानी बहुत ठंडा तथा स्वास्थ्यवर्धक होता था।इन्हीं बौड़ियाँ के साथ एक खुला मैदान था जिसे डोहरा कहते थे ।इस डोहरे में राजा के आने पर उसके घोड़ों को बांधा जाता था ।तभी से इस गांव का नाम घोड़े का डोहरा पड़ा था। राजा जब भी इस क्षेत्र में दौरे पर आता था वह यहां ज़रूर रुकता था। इसी गांव में सुंदर भी अपने माता पिता के साथ रहता था।सुंदर पढ़ाई में ठीक था। उस ज़माने में घर का खर्च चलाना बहुत मुश्किल काम होता था। गांव से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर स्कूल था अतः सुंदर को दसवीं तक की पढ़ाई नजदीक के स्कूल से करने में कोई कठिनाई नहीं आई । सुंदर को दसवीं पास करने के बाद डाक व तार विभाग में बाबू की नौकरी मिल गई। उसकी शादी भी गरीब परिवार की कन्या बिमला के साथ हो गई ।  बिमला सामान्य सी महिला थी तथा सीधे स्वभाव की थी।शादी के बाद काफी समय तक उसके कोई बच्चा नहीं हुआ। सुंदर व उसकी पत्नी बिमला ने कई जगह जाकर इलाज भी करवाया तथा कोई मन्दिर नहीं छोड़ा जहां मन्नत न मांगी हो।  भगवान ने आखिर उनकी मन की मुराद पूरी कर दी। शादी के लगभग पन्द्रह वर्ष के बाद उनके घर एक बेटा पैदा हुआ । घर में बहुत खुशी का माहौल था । उन्होंने बेटे का नाम प्रवीण रख दिया।बेटा देखने में तो ठीक लगता था लेकिन वह मानसिक तौर पर विकसित नहीं था । दो वर्ष तक जब तक उसने बोलना शुरू नहीं किया उन्हें इस बात का पता ही नहीं चला कि उनका बेटा मानसिक रूप से कमज़ोर है। जैसे ही उन्हें इस बात का पता चला कि बेटा मानसिक तौर पर विकसित नहीं है उन्हें बहुत सदमा लगा । प्रवीण के पैदा होने के बाद सुंदर के घर एक बेटी व एक बेटा भी हो गए जो सामान्य थे।क्योंकि बड़ा बेटा प्रवीण बोल नहीं पाता था इसलिए लोग उसे टटू कहकर बुलाने लगे तथा उसका नाम टटू ही हो गया । टटू बोल नहीं पाता था लेकिन इशारों से सब कुछ बताता था । बात करने पर भी इशारों से ही बात करता था । कुछ समझ भी रखता था।सबसे हाथ भी मिलाता था तथा अपने तरीके से खुशी का इज़हार भी करता था।उसकी बुआ जब भी उनके घर आती थी तब टटू उसके पैर छूता था तथा जब उसको बुआ पैसे देती थी तो बहुत खुश होता था। बच्चा चाहे कैसा भी हो मां-बाप को उससे प्यार होता ही है आखिर माता पिता के दिल का टुकड़ा होता है ।टटू से भी उसके मां-बाप को बहुत प्यार था।टटू की दादी रामकली उसे बहुत प्यार करती थी।वह कहती थी चाहे बोलता नहीं है पर मेरे दिल का टुकड़ा है।धीरे-धीरे टटू बड़ा होने लगा ।टटू की छोटी बहन की शादी हो गई तथा वह अपने घर चली गई।छोटे भाई भीम का भी विवाह हो गया। भीम की पत्नी विद्या काफी समझदार थी जिसने आते ही घर को बड़े अच्छे तरीके से संभाल लिया। भीम घर से दूर किसी निजी कम्पनी में काम करता था अतः घर की सारी जिम्मेवारी विद्या को ही निभानी पड़ती थी क्योंकि रामकली भी अब पूरी तरह से उस पर ही निर्भर हो गई थी।बिमला बहुत ही सीधी थी तथा

टटू अपने छोटे भाई के साथ ही रहता था ।घर में सभी उसकी अच्छी तरह से देखभाल करते थे । विद्या भी टटू का विशेष ध्यान रखती थी।रामकली का तो वह बहुत चहेता था।टटू कोई भी काम अपनी मर्जी से ही करता था ।उसके मन में जो आता था वही वह करता था जिस काम को को करने की उसकी इच्छा नहीं होती थी उसको बार बार बोलने के बाद भी वह नहीं करता था। गुस्सा होने पर दूर जाकर बैठ जाता था। घर में आए मेहमानों को नमस्ते करना या पैर छूना उसकी इच्छा पर निर्भर करता था।टटू अपनी मर्जी से किसी के पैर छू लेता था, किसी से हाथ मिला लेता था। हाथ के इशारे से पूछ लेता था क्या हाल है ।टटू को सरकार की तरफ से अपंगता पेंशन मिलना शुरू हो गई थी । पेंशन के रूप में घरवालों को थोड़ा आर्थिक सहायता मिलने से राहत मिली थी।टटू के पिता सुंदर अब पोस्ट मास्टर बन गए थे । शाम को हर रोज़ घर आ जाते थे।अचानक उनकी आंखों में ऐसी बीमारी हो गई जिससे उनको दिखाई देना कम होने लगा । कई जगह इलाज करवाने के बाद भी उनकी आंखों में कोई सुधार नहीं हुआ तथा धीरे-धीरे उनकी नजर बिल्कुल ही कम हो गई ।उन्हें नौकरी से भी पहले ही सेवानिवृत्ति लेनी पड़ी । पहले से ही घर में एक बेटा था जो मानसिक तौर पर ठीक नहीं था, दूसरे सुंदर की आंखों ने भी जवाब दे दिया था इससे घर में सब चिंतित थे। सूंदर की आंखों की रोशनी इतनी कम हो गई थी कि अब उसका घर के बाहर आना जाना बहुत मुश्किल हो गया था।सुंदर को बाहर भी पकड़ कर ले जाना पड़ता था।  सुंदर की मां बहुत परेशान रहने लगी। उसे अपने बेटे सुंदर की बहुत चिंता थी कि बिना आंखों के पूरा जीवन कैसे व्यतीत करेगा। सुंदर की बीमारी के दुख की चिंता के कारण वह भी चल बसी । अभी उसको गुजरे दो वर्ष ही हुए थे कि एक दिन  बिमला जब घास काटने खेत में गई हुई थी तो अचानक उसे सांप ने काट लिया।गांव की बात थी तुरंत सारे लोग इक्कठे हो गए।झाड़ फूंक करने वाले भी बहुत आ गए ।सबने बहुत जोर लगाया लेकिन सांप का विष नहीं उतरा।पालकी में डाल कर उसे स्वास्थ्य केंद्र ले गए लेकिन सांप का ज़हर सारे शरीर में फैल गया था जिससे उसकी मृत्यु हो गई।परिवार पूरी तरह से टूट चुका था लेकिन भीम की पत्नी विद्या ने हिम्मत नहीं हारी।अब घर में सुंदर उसका छोटा बेटा भीम उसके दो बच्चे व बड़ा बेटा टटू थे। सुंदर को भी अब घर के अंदर व आंगन में भीम की पत्नी विद्या पर पूरे घर को संभालने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ गई थी। घर में दो भैंसें भी पाल रखी थी पूरा दिन उसको काम से ही फुर्सत नहीं मिलती भैसों की देखभाल करें, बच्चों को संभाले  या टटू और सुंदर की देखभाल करें । समय से कोई नहीं जीत सकता है पूरे परिवार ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया । टटू घर से ज़्यादा दूर नहीं जाता था।कभी कभार अपनी  भाभी के साथ खेत तक जाता था तथा थोड़ा सा घास उठा कर ले आता था।टटू गांव के सभी लोगों का चहेता था।टटू की एक खासियत थी कि जब कभी उसके घर किसी कार्यक्रम में ज़्यादा लोग आ जाते थे तो वह किसी के नज़दीक नहीं आता था तथा दूर खड़ा हो जाता था।शायद भीड़ से उसे डर लगता था।

एक दिन सुंदर का एक रिश्तेदार उनके घर आया।काफी देर तक इधर उधर की बातें होती रही।टटू दीवार के कोने में खड़ा सब देखता रहा।उस रिश्तेदार ने पूछा कि क्या इसको पेंशन लगी है।इस पर सुंदर ने कहा कि नहीं।उस रिश्तेदार ने स्वास्थ्य विभाग व कल्याण विभाग में टटू की पेंशन के लिए सारे दस्तावेज लगाकर आवेदन कर दिया।टटू का बैंक में खाता खोल दिया गया।बहुत मुश्किल से टटू को फोटो खिंचवाने के लिए व बैंक में ले गए।वह घर से बाहर जाने में बहुत डरता था।बस में बैठने से भी बहुत डरता था।लगभग तीन महीने बाद टटू को पेंशन लग गई।घरवालों को उसकी देखभाल के लिए थोड़ा आर्थिक सहयोग मिलने से राहत मिली।टटू की उम्र अब चालीस वर्ष हो गई थी तथा वह मोटा हो गया था।वैसे टटू किसी से बात नहीं करता था लेकिन गांव के लोगों के साथ उसकी अच्छी दोस्ती थी।उनके साथ हाथ मिलाता,कुछ बोलता व कभी कभी जोर से हंसता भी था। टटू को मिट्टी खाने की आदत पड़ गई। गांव के किसी व्यक्ति ने उसे मिट्टी खाते देखा तब इस बात का पता चला की वह मिट्टी भी खाता है ।रात को अचानक टटू के पेट में जोर का दर्द उठा।सारी रात वह जोर जोर से ऊंघता रहा।उसने सुंदर को पेट पर हाथ लगाकर इशारे से बताया कि दर्द हो रहा है।सुबह होते ही उसको तुरंत पास के स्वास्थ्य केंद्र ले गए जहां डॉक्टर ने उसे सुई लगाई तथा दवाई दी जिससे वह ठीक हो गया।लगभग पंद्रह दिन के बाद फिर उसके पेट में दर्द उठा।प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से उसे जिला अस्पताल भेज दिया गया जहां उसके टैस्ट लिए गए।टैस्ट में पता चला कि उसकी आंत में जख्म हो गए हैं।पांच दिन अस्पताल में रहने के बाद कुछ सुधार हुआ तो उसे घर भेज दिया गया। अब टटू ठीक था।ठीक कहना खा रहा था,सबसे अच्छी तरह बात करता था।घर के एक ही कमरे में सुंदर व टटू सोते थे ।दोनों अपना दिनचर्या का काम खुद कर लेते थे।सुंदर अपनी छड़ी के सहारे बाथ रूम तक चला जाता था ।जब भी टटू उठता था तो सुंदर उससे बात कर लेता था।टटू को खर्राटे मारने की आदत थी।सुंदर उसके खर्राटों से ही पता लेता था कि अब वह सो गया है।टटू जब भी उठता था तब राम राम बोलता था जिससे सुंदर को पता लग जाता था कि टटू अब उठ गया है।दोनों को चाय पीने की आदत थी।विद्या सुबह उनके उठने के पश्चात उन्हें चाय देती थी।आज रात को टटू दो तीन बात वाश ररूम गया।जब भी टटू उठता था सुंदर उसको पूछ लेता था जिसका उत्तर वह देता था।

सुबह के लगभग पांच बजे थे सुंदर की नींद खुल गई। अचानक उसका ध्यान टटू पर गया।अभी थोड़ी देर पहले ही टटू वाश रूम होकर आया था।टटू के खर्राटों की आवाज नहीं आ रही थी।उसने टटू टटू करके आवाज लगाई लेकिन टटू ने कोई जबाब नहीं दिया।उसे शंका हुई उसने जोर की आवाज अपनी बहू विद्या को लगाई।विद्या ने आकर जब देखा तो टटू का शरीर ढ़ीला पड़ा हुआ था।उसकी सांस भी नहीं चल रही थी।वह एकदम से घबरा गई तथा आंगन में खड़े होकर उसने शोर मचा दिया।उसकी आवाज सुन कर तुरंत गांव के लोग इक्कठे हो गए।उसे अस्पताल ले गए लेकिन डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया।पूरे परिवार के साथ साथ सारा गांव सदमे में थे कि आखिर टटू ऐसे कैसे अचानक चुपचाप चला गया।टटू के भाई को भी सूचना भेजी गई।उसके आने के बाद उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया।टटू की मौत से सब स्तब्ध थे।आज आंगन का वह कोना सुनसान था जहां टटू पूरा दिन बैठा रहता था।गांव के हर आने जाने वाले को कौतूहल भरी नजरों से देखता रहता था।टटू चला गया,सब की आंखों में आंसू छोड़कर, किसी को पुकारा भी नहीं किसी से मिला भी नहीं।

— रवींद्र कुमार शर्मा 

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र