कविता

शीत ऋतु

इसमें कुछ नया नहीं है
आना जाना तो प्रकृति का नियम है
बस इसी क्रम में गर्मी गयी
और सर्दी आ गई।
मौसम ठंडा ठण्डा होने लगा
कुहरा, धुंध , बर्फबारी का
प्रभाव चारों ओर दिखने लगा।
सूरज भी आँख मिचौली करने लगा
अपना दर्शन देने में भी नखरे दिखाने लगा,
दिन छोटा और रात भी लंबी होने लगी
ठंड भरी ठिठुरन अपना रंग दिखाने लगे।
बच्चे शरारतों से बाज नहीं कहाँ आ रहे हैं
बुजुर्ग और बीमार कुछ ज्यादा परेशान हो रहे हैं।
बीमारियों का जोर भी बढ़ रहा
निर्धन, गरीब, असहाय, मजदूर बेहाल होने लगे
सबके दांत किटकिटाने लगे
रजाई, कंबल, शाल, स्वेटर, टोपी, मफलर
रंग बिरंगे जैकेट नजर आने लगे,
अलाव, हीटर, ब्लोअर, गीजर के भाव भी बढ़ने लगे।
हर किसी को ये शीत ऋतु
अपनी औकात दिखाने लगे,
जिसने शीत ऋतु से मुँहजोरी की कोशिश की
उनको दिन में भी तारे नज़र आने लगे।
फिर भी हर मौसम के अपने अपने फायदे हैं
शीत ऋतु भी निरर्थक नहीं है
यह अलग बात है कि हर ऋतु के
अपने अपने किस्से हैं,
हर ऋतु के अपने अपने तर्क हैं।
जो साधन संपन्न हैं
फर्क तो उन्हें भी पड़ता है,
पर उन्हें उससे बचाव के लिए लड़ना नहीं पड़ता
उनकी सामर्थ्य और संपन्नता से
उन्हें शीत ऋतु का दंश न के बराबर झेलना पड़ता है।
लेकिन जो गरीब, साधन हीन है
वह आत्मबल और संतोष से
शीत ऋतु का भी एक एक दिन जैसे तैसे जीता है।
हर दिन हर मौसम उसे अच्छा लगता है
क्योंकि वह अपने आप को
ईश्वर के भरोसे छोड़ जीता है,
क्योंकि उसको तो हर मौसम में
तमाम संघर्षों के साथ ही जीना पड़ता है।
हर मौसम की तरह शीत ऋतु भी उसे
अच्छा न लगने पर भी अच्छा ही लगता है।
क्योंकि शीत ऋतु भी तो प्रकृति का ही
महज एक अदद हिस्सा है,
जो हर किसी के जीवन में आता है
हम हों या आप, सबका इससे गहरा नाता है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921