कविता

राम को निज धाम मिल

वो वक्त था सन् पंद्रह सौ अट्ठाइस 
जब बाबर के सेनापति मीर बाकी ने
रायकोट, अयोध्या में स्थित
प्रभु श्रीराम जन्मस्थान मंदिर तोड़ा
और उसी मंदिर के अवशेषों से
तीन गुम्बदों वाले इस्लामिक ढांचे का
निर्माण भी करा दिया था,
तब से यह मस्जिद जन्मस्थान कहा जाने लगा ,
जो आगे चलकर बाबरी मस्जिद और
फिर विवादित ढाँचा कहा जाने लगा।
तब से हमारे धर्मप्रेमी साधकों, संतों, महात्माओं
और हमारे पुरखों, अनेकानेक राम भक्तों ने
श्रीराम मंदिर को मुक्त कराने का ही नहीं
भव्य राम मंदिर के सपने को भी जीवंत रखा
जिसके लिए सतत् संघर्षपथ का वरण किया,
सामाजिक, धार्मिक, कानूनी पथ पर आगे बढ़ते रहे
रामभक्तों को संघर्षों से जागृति ही नहीं
उत्साहित, प्रेरितकर विश्वास भी दिलाते रहे।
पांच शताब्दियों तक लंबा संघर्षपथ तय किया
लंबी कंटीली, पथरीली यात्राएं की,
कानूनी लड़ाई लड़ी, लाठी, गोली खाई,
और जेल भी गये,
कुछ गुमनाम की भेंट चढ़ जाने कहाँ खो गए
कितनी यातनाएं सही, अपमानित, उपेक्षित हुए,
अपना और अपनों की आहुतियां देकर भी
श्रीराम के भव्य मंदिर के सपने को
कभी न धूमिल होने दिया,
और अंततः आज उनका ही नहीं, हम सबका भी
जब प्रभु श्रीराम के भव्य से भव्यता
मंदिर निर्माण का सपना पूरा हो गया,
प्रभु श्रीराम जी को अपना अब निज धाम मिल गया।

*सुधीर श्रीवास्तव

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