कविता

सम्मान की लालसा

समय के साथ ही आज
सम्मान की दिशा और दशा के साथ
हमारी मानसिकता भी बहुत बदल गई है,
आज सम्मान के नाम सम्मानों को
छीछालेदर होती जा रही है।
पैसों से सम्मान खरीदने बेचने का बाजार बढ़ रहा है,
योग्यताओं को नहीं धन का महत्व भाव खा रहा है।
जो पात्र हैं वो पार्श्व में चुपचाप अपना कर्म कर रहेहैं,
अपात्र छिछले तालाब की तरह
हिलोरें मार बहुत मगन हो रहे हैं,
सोशल मीडिया और क्षेत्रीय अखबारों की
आये दिन सुर्खियां बन रहे हैं,
क्षणिक भौकाल से बड़ा घमंड कर रहे हैं,
खुद को शहंशाह ही नहीं ख़ुदा भी समझ रहे हैं।
बड़ा गुमान कि उनका भाव बढ़ रहा है
भ्रम का शिकार हो ये समझ नहीं पा रहे हैं
कि उनका बड़ा मजाक बन रहा है
सम्मान की आड़ में उनका सम्मान नहीं
उनकी योग्यता का मर्दन हो रहा
जहां तक जाने की उनकी क्षमता है,
उस राह में रोड़ा अटकाया जा रहा है
पानी के बुलबुले की तरह उनके भविष्य का
आधार स्तम्भ कमजोर किया जा रहा है।
पर इसमें दोष उनका नहीं जो सम्मान बेंच रहे हैं,
जब खरीददारों की भीड़ लाइन लगाए खड़ी है
और उनको बिना श्रम बाजार मिल रहा है,
जहां खुलेआम तरह तरह का सम्मान बिक रहा है
जिसकी जैसी क्षमता, सामर्थ्य है
उसी तरह का सम्मान वह खरीद कर
क्षणिक नाम पाकर फूला नहीं समा रहा है,
खुद के पैरों में कुल्हाड़ी मार रहा है
यह बात वह समझ ही नहीं रहा है,
खुद की ही आँखों में धूल झोंक रहा है
बस सम्मान की चाह मेंेें इधर उधर ताक झांक कर रहा है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921