सामाजिक

जीवन में उत्साह का होना ही कार्य के सफलता की कुंजी है……।

अक्सर कहा जाता है कि ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती है। वैसे ही जीवन के प्रत्येक कार्य भी दोनों हाथों के बगैर नहीं होते। शारीरिक रूप से दो हाथ तो हम सभी को दिखते हैं, लेकिन एक तीसरा हाथ भी होता है जो दिखाई नहीं देता। यह भी सच है कि किसी कार्य के पीछे न दिखाई देने वाला हाथ यदि नहीं होता तो दिखते हुए दोनों हाथों से किया हुआ कार्य व्यवस्थित अथवा सही ढंग से नहीं हो पाता। अब हम यहीं सोच रहे होंगे कि वो तीसरा हाथ कौनसा है जो दिखने वाले दोनों हाथों से भी ज्यादा ताकत/शक्ति रखता है? उस हाथ का नाम है- ‘‘उत्साह’’।
मनोबल हमारा चाहे कितना भी दृढ़ हो, कठोर परिश्रम करने का चाहे कितना भी सामर्थ्य हममें हो, परन्तु यदि हमारा मन ही उत्साह विहिन है तो हम किसी भी कार्य को सम्यक् प्रकार से सम्पन्न नहीं कर पायेंगे। ऐसे किसी भी कार्य के पूर्ण होने के पश्चात् प्रसन्नता की अनुभूति हम कर पायेंगे, उसकी सम्भावना नहींवत् है।
दूसरी ओर किसी व्यक्ति का मनोबल चाहे कितना भी कमजोर हो, शारीरिक दृष्टि से चाहे वह कितना भी दुर्बल हो, परन्तु उसके अन्तर में यदि भरपूर उत्साह है तो कार्य के सम्पन्न होने में एवं प्रसन्नता की अनुभूति प्राप्त करने में कभी कोई भी बाधा नहीं आने वाली है।
वर्तमान समय में विडम्बना यह है कि स्वयं के मनोबल को दृढ़ बनाने एवं परिश्रम को शिखर तक पहुँचाने की चर्चाएँ तो जोर-शोर से चल रही हो, लेकिन उसके लाखवें भाग का भी परिश्रम एवं उत्साह जीवन में दिखाई नहीं दे रहा है। परिणाम भी इसका चारों ओर से दिखाई दे रहा है। चाहे स्कूल हो या कॉलेज, सरकारी कार्यालय हो या अस्पताल, व्यापार हो या कारखाना, रेलवे स्टेशन हो या पुलिस स्टेशन, इन सभी स्थानों पर प्रतिदिन अनेकों कार्य तो हो रहे है, पर कहीं भी किसी के चेहरे पर उत्साह या प्रसन्नता देखने को नहीं मिलती है। एक बात ध्यान में रखना बहुत जरूरी है कि ज्यादा कार्य ;डवतम ॅवताद्ध, सही कार्य ;ैउंतज ॅवताद्ध एवं तुरन्त कार्य ;थ्ंेज ॅवताद्ध तो अपेक्षाकृत इंसान से ज्यादा तो एक मशीन भी कर सकती है। लेकिन कार्य को पूर्ण करने के पश्चात् जो प्रसन्नता या खुशी जो मानव अनुभव कर सकता है वो मशीन तो नहीं कर सकती ना।
हमें सदैव इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि शरीर को सुचारू रूप से चलाने के लिए मुख्य रूप से जैसे प्राणवायु आवश्यक होती है। वैसे ही उद्यान की हरियाली को बनाये रखने में मुख्यःता पानी आवश्यक होता है और प्रचण्ड़ गर्मी में शीतलता का अनुभव करने में जिस प्रकार हवा आवश्यक है उसी प्रकार जीवन को जीवन्त रखने में उत्साह की भी उतनी ही आवश्यकता होती है। उत्साह वह ऊर्जा है जिसका जितना भी उपभोग करो वह कभी कम नहीं होता। इसकी शक्ति यदि बराबर समझ में आ जाए तो प्राणी अपने जीवन में उत्साह को निरन्तर बनाये रख सकता है।
आज के दौर में पैसों के पीछे पागल मनुष्य उसको कमाने के उत्साह को सतत् बनाये रखता है। इसका एक ही कारण है कि उन पैसों में उसे पैसे नहीं बल्कि उसके द्वारा खरीद शक्ति ;च्नतबींेपदह च्वूमतद्ध ही दिखाई देती है। वह मानता है कि इस अर्थपूर्ण संसार में यदि उसके पास में आज पैसा है तो पद है, रूतबा है, प्रसिद्धि है और साथ ही साथ अच्छे सम्बन्ध भी है। सुरक्षा के साथ सुविधा भी है। उसके दिमाग में जब भी पैसे कमाने की बात आती है तो वह गर्मी तथा सर्दी के भीष्ण तापमान में भी दौड़ने लगता है। अक्सर सामने आये हुए भोजन को भी छोड़कर वह भागने लगता है। अर्थात् जिस क्षेत्र में ताकत अथवा शक्ति के दर्शन होता है, तो उत्साह उस क्षेत्र में सहज ही सक्रिय हो जाता है। तब सहज हमें सफलता मिल जाती है।
मित्रों! इसी उत्साह को लेकर ज्ञानीजन सदैव कहते हैं कि हमें खेत में पड़ी दरार को भरने की कतई आवश्यकता नहीं है, जब भी खेत में पानी आएगा तो दरार स्वतः ही मिट जायेंगी। बस इसी प्रकार हमारे जीवन में भी हताशा या निराशा की यदि दरारे पड़ गई है तो हमें उन्हें भरने की कोई आवश्यकता नहीं है, जब भी हृदय में उत्साह का पानी आयेगा तो दरारे स्वतः ही भर जायेगी।

— राजीव नेपालिया (माथुर)

राजीव नेपालिया

401, ‘बंशी निकुंज’, महावीरपुरम् सिटी, चौपासनी जागीर, चौपासनी फनवर्ल्ड के पीछे, जोधपुर-342008 (राज.), मोबाइल: 98280-18003