कविता

अपना रिश्ता नाता

देश की राजनीति को समझना बड़ा कठिन है
इसके लिए शिक्षा की नहीं शातिर होने के साथ ही
बेशर्मी में पी एच डी की जरूरत है,
कब कहां कौन कितना गिरगिट की तरह रंग बदल ले
कब कौन कितना करीब या दूर आ जा रहा है
ऐनवक्त पर ही पता चल पाता है
कौन अपना और कौन पराया है
कब तक अपना है और कब पराया
ये तो खुद को भी पता नहीं होता है
क्योंकि राजनीति में तो अपना भी भरोसा नहीं होता है,
कब अपना घर लुटता और किसी का आबाद होता है।
दोनों में किसी को भी पता नहीं होता,
पानी पी पीकर जो कोसते हैं
वै कब गलबहियां कर बैठते कि गिरगिट भी शरमा जाते
कौन दोस्त दुश्मन और कौन दुश्मन दोस्त है
या दोस्त बनकर कौन दुश्मनी कर रहा है,
दोस्ती की आड़ में गले काटने का
फुलप्रूफ इंतजाम कर रहा है
अच्छे अच्छों को भी पता नहीं चलता है,
और जब लुटपिट जाता है तब
माथा पकड़कर बैठ जाता है,
और जरा सी लापरवाही में अपना कटा गला देख
सबसे ज्यादा खुद को कोसता।
जिसे खुद मदारी होने का घमंड होता
वो सिर्फ जमूरा बन नाचता रह जाता है
और खाली झुनझुना बजाता है,
सारा माल नया मदारी उड़ा ले जाता है
और मदारी को नया आइना दिखाता
अपने राजनीतिक कौशल का सबूत
अपनी सुविधा से दुनिया के सामने पेश करता।
मान, अपमान, नीति, सिद्धांत, मर्यादा,
कसमें वादे, गाली, हंसी, मजाक से वो आंखें फेर लेता,
आज केअपने स्वार्थ हित को वो
अपना असली सिद्धांत कहता
गधे को बाप कहने में नहीं शर्माता,
क्योंकि आज की राजनीति का यही पाठ ही तो
नेताजी बहुत अच्छे से आता,
कुर्सी, सत्ता के अलावा और उनका
किसी से नहीं है कोई अपना रिश्ता नाता।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921