कविता

हार की चाहत लिये, विहार की सरकार हैं

महफिलों का यहां पर, हाल मैं खूब जानता हूं
भीड़ की न शक्ल कोई, हाल मैं खूब जानता हूं

हर तरफ अंजान हैं, बस अजनबी के मेले हैं
अपनी जानिब देख कर, हाल मैं खूब जानता हूं

धुंध है और शोर है, कदमों में आपाधापी है
कौन किसका है यहां, हाल मैं खूब जानता हूं

आंधी और तूफान से, हाथ, दो दो हो चुके
उड़ती खाक का यहां, हाल मैं खूब जानता हूं

हार की चाहत लिये, विहार की सरकार हैं
कैसे पलट जाते हैं सब, हाल मैं खूब जानता हूं

विपदा बड़ी झेले हैं, कठिनाई से खेले यहां
इस ‘‘राज’’ काज का, हाल मैं खूब जानता हूं

— राजकुमार तिवारी ’’राज‘‘

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782