कविता

बागबान!

घर-परिवार  की प्यार से  देखभाल  करें,

संयम,  समर्पण भावे, सेवा-शुश्रूषा  करें, 

सबको अधिकार दे, साथ-साथ ले चलें,  

दीप प्रदीप, ज्योत से ज्योत जलाते चलें।।1।।

माली  वहीं  जो हृदय प्रीत- पुष्प खिलाये, 

विविध रंगी, अनुपम अल्पनायें सजाये, 

डाल-डाल  डोले, पवन संग हिय महके, 

पंछी करें कलरव, गीत मधुर गुनगुनायें।।2।।

ज्ञानी,  कुशल, कर्मठ,  कर्तव्यनिष्ठ हो, 

माली, संवारे कामकाज,  सत्यनिष्ठ हो,

सबका चाहे भला, सबका हो विकास, 

शीतल छांव प्यार की, चट्टान-सा अटल हो।।3।।

संस्कार बीज बोये, सद्भाव फसल उगायें, 

प्रेम से सबको मिल-जुलकर रहना सिखायें,

विपदा की घडी में, एक दुजे का संबल बनें,

धूप हो या छांव, थामे हाथ, साथ निभायें।।4।।

सांचा माली मनमुटाव की दरार से बचायें,

रिश्तों में हरियाली, फूलों की रंगोली रचायें,

प्रेम रस धारा निर्मल निरन्तर बहती रहें,

फूलों से सुरभित पवन, हृदय हर्षायें।।5।।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८