लघुकथा

अंतिम विदाई

शिक्षक महोदय आज सेवानिवृत्त हो रहे थे,

मगर वे खामोश थे,

अंदर चल रहे मनोभावी तूफानों से

वे विचलित तो थे पर

कुशलता कहें या विवशता

वो दबा कर बैठे थे,

उधर वक्तागण बार बार

उनके अच्छे कार्यों की,

पढ़ाने के तरीकों की,

उनके शालीनता का,

बखान किये जा रहे थे,

पर मैं श्रीमान जी की

भावनाएं, आंतरिक उथल पुथल को

पढ़ने का प्रयास कर रहा था,

मुझे बुरा तो लग रहा था कि

लोग साथ छोड़ जाने,

अंतिम विदाई की बातें,

बार बार कर रहे थे,

बातें तो ये होने थे कि

उनके अनुभवों का लाभ

कब कब और कैसे हमें,

संस्था और छात्रों को दिला सकें,

बहुतों ने उपहार भी दिये,

आशीर्वाद भी लिये,

और अंत में सभी

सामुहिक जलपान कर

अपनी संस्था की ओर निकल लिए,

शिक्षक महोदय को भावनाओं की भंवर

और भविष्य की चिंता के बीच छोड़कर,

ये कहते हुए कि

हम सबको भी एक न एक दिन

सेवानिवृत्त होना ही पड़ेगा।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554