गीत/नवगीत

गीत – तेरे जैसा दुनियां में इन्सान नहीं

उर्वर भूमि के मालिक उद्यमी कृषक सुन।

नींव के सृजक प्रभाकर श्रमिक सुन।

तेरे खून पसीनें में तो सूरज है।

सुन्दर काएनात तिरी ही मूर्त है।

रीस तिरी कर सकता भी भगवान नहीं।

तेरे जैसे दुनियां में इन्सान नहीं।

            कर्मठता का सारा तन्मय तेरा है।

            अम्बर भीतर तेरे साथ सवेरा है।

            तेरे नयनों से ही चांद सितारे हैं।

तेरे करके धरती पास नज़ारे है।

            तुझ से ऊँची-सच्ची कोई शान नहीं।

            तेरे जैसे दुनियां में इन्सान नहीं।

धर्म तिरा है धरती, धरती जात तिरी।

सौहार्दता में चढ़ती प्रभात तिरी।

कण-कण तेरा अपना कोई ना दूजा है।

श्रम तेरी में मन्दिर जैसी पूजा है।

कौन तिरी हिम्मत से कुर्बान नहीं।

तेरे जैसा दुनियां में इन्सान नहीं।

            तेरे सदके सूखे में खुशहाली है।

            महक रही गुलशन की डाली डाली है।

            पर्वत चीर दिखावें, कुण्ड-नहर निकाले।

            सहरा का सीना चीर समन्दर निकाले।

            और किसी का ऐसा तो ईमान नहीं।

            तेरे जैसा दुनियां में इन्सान नहीं।

आविष्कारों के सिर ताज रखाए तू।

चांद के ऊपर जा कर चांद सजाए तू।

उन्नति का तू सच्च सुत्रधार रहा।

तेरे में अलौकिक एक भण्डार रहा।

तू अन्नदाता है तेरी पहचान नहीं।

तेरे जैसा दुनियां में इन्सान नहीं।

मूल्य तेरा न पाए नेता रिश्वतखोर।

            कदर तेरी पड़ जाती ग़र होते और।

            तेरा खून-पसीना लूटा चोरों ने।

            बाग़ में सुन्दर नाच रचाते मोरों ने।

            तू नहीं कोई भोला तू नादान नहीं।

            तेरे जैसा दुनियां में इन्सान नहीं।

क्रान्ति आएगी तू हिम्मत रख जरा।

ज़हर खड़प्पे-बीसियर का भी चख जरा।

सांपों का कब्जा है वर्मी के ऊपर।

धैर्य बांध कर रख किम्मत से ना ड़र।

अब वर्मी में सांपों का स्थान नहीं।

तेरे जैसा दुनियां में इन्सान नहीं।

            वैकुण्ठकी परिभाषा काशतकारी में।

            कुंदन उगता तेरी कारगुजारी में।

            मिट्टी तेरी पूजा मिट्टी भक्ति है।

            तेरे सिर पर मानवता की शक्ति है।   

            तेरे बल के आगे बालम बलवान नहीं।

            तेरे जैसा दुनियां में इन्सान नहीं।

— बलविंदर बालम

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409