गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

आँसू से नहला कर प्रतिदिन, दिल का मैल  बहा देते हैं,

धुंधले पड़े जो स्वप्न पुराने, फिर से उनको चमका देते हैं।

ऊसर भूमि में हरियाली, पत्थर दिल में प्यार का दरिया,

काँटों की बगिया में भी हम, उपवन नया सजा देते हैं।

पतझड़ का मौसम जब आता, लगता जीवन सिमट रहा,

पतझड़ के मौसम में भी हम, बसन्त आस सजा देते हैं।

साँसों की गिनती तो सीमित, क्यों इनको बरबाद करें,

प्यार प्रेम अपनापन से, मानवता का गीत सुना देते हैं।

— डॉ अ. कीर्तिवर्द्धन