ग़ज़ल
घास का ढेर हूँ चिंगारी दिखा दे मुझको
खाक हो जाऊँगा थोड़ी सी हवा दे मुझको
कहाँ ढूँढेगा मुझे खुद ही पहुँच जाता हूँ
मेरे कातिल का जरा नाम पता दे मुझको
कसम ने तेरी मयकशी छुड़ा तो दी मेरी
तेरी नज़र से मगर आज पिला दे मुझको
मर्ज़ दिल का हमेशा लाइलाज होता है
दर्द बढ़ जाएगा ना और दवा दे मुझको
साँस भी चल रही है, दिल भी धड़कता सा है
अभी जिंदा हूँ, जरा और सज़ा दे मुझको
मैं थक गया हूँ ज़माने की ठोकरें खा के
हो सके तो थोड़ा ज़हर खिला दे मुझको
जिंदगी तूने मुझे चैन से जीने ना दिया
सुकून मौत दे जाए ये दुआ दे मुझको
— भरत मल्होत्रा