गीत/नवगीत

महाठगबंधन

कभी गरियाते हैं, तो कभी गले लगाते हैं

निज लाभ लोभ में एक-दूजे को सहलाते हैं

एक पूरब एक पश्चिम, एक उत्तर एक दक्षिण 

देखो सब मिलकर अब क्या-क्या गुल खिलाते हैं। 

जनता को सदा छलते रहे हक उनका ये निगलते रहे 

विचारधारा मिले या न मिले   ये तेल में पानी मिलाते हैं। 

करके वादा दिए के साथ का  हवा के साथ हो जाते हैं 

अपने हित को नारों में सदा जनहित ये बताते हैं। 

एक-दूसरे को हमेशा ही मौका मिलते ही नोचते रहे  

देख शेर सामने अपने गीदड़-गीदड़ मिल जाते हैं। 

न कोई किसी की बहन न  कोई किसी का भैया 

सबको बचानी है कैसे भी अपनी-अपनी डूबती नैया 

नकली वादे, नकली दावे नकली इनके सब नारे हैं 

लोकतंत्र का मजाक उड़ाते ये लोकतंत्र के हत्यारे हैं। 

— डॉ. शैलेश शुक्ला

डॉ. शैलेश शुक्ला

राजभाषा अधिकारी एनएमडीसी [भारत सरकार का एक उपक्रम] प्रशासनिक कार्यालय, डीआईओएम, दोणीमलै टाउनशिप जिला बेल्लारी - 583118 मो.-8759411563