कविता

बेटियां बोझ कहाँ होती हैं

बेटियां बोझ नहीं है
यह समझने नहीं महसूस करने की जरूरत है,
जिसे मैं महसूस करता था उसके जन्म से
पर आज जान भी लिया बहुत अच्छे से।
जब बेटी ने बिना कुछ कहे ही बता दिया
मुझे अपनी अहमियत।
उस दौर में जब मैं खोखला हो रहा था
अंदर से हार रहा था अपने आप से
हौंसले जब साथ छोड़ने की धमकी दे रहे थे।
तब बेटी की कारगुजारियां
रेगिस्तान में हरियाली लाने की कोशिशों में लगी थीं।
मां बाप बेबस होते हैं
न चाहकर भी बच्चों को बहुतेरी बेबसी से
महफूज़ रखना चाहते हैं,
बेटियों को तो हर दुविधा चिंता से
बहुत दूर ही रखना चाहते हैं
पर बेटियां तो सब कुछ जान लेती हैं
फिर भी बड़े करीने से मौन रहती हैं
और इतनी मासूम इतनी भोली बनती हैं
जैसे वो कुछ जानती ही नहीं हैं,
कुछ कर पायें या न कर पायें
पर हर समस्या से निजात दिलाने के
ताने बाने दिन रात बुनती हैं,
बिना कहे ही वो अपनी ही नहीं
आपकी भी अहमियत का अहसास कराती हैं।
वे बेटी हैं ये कभी नहीं कहती हैं
बल्कि वे आपके लिए विशेष बन जाती हैं
सब कुछ अपने क्रियाकलापों से कहती हैं
आपका ध्यान रखने के साथ बहुत फ़िक्र करती हैं
सिर्फ इतना भर ही नहीं
बेटियां आपके जीवन को विस्तार भी देती हैं,
अपने होने का सिर्फ अहसास कराती हैं,
बेटियां बोझ कहाँ होती हैं?
बेटियां बोझ कहाँ होती हैं?

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921