कविता

बूँद-बूँद पानी को सहेजें

बूँद-बूँद पानी को सहेजें
यह पानी बहुत कीमती है।
जल है, तो कल है,
यही सत्य और अटल है।
इस बात को करें गौर
नही तो आएगा भयानक दौर।
अभी से सचेत हो जाओ,
सम्हल जाओ।
प्रकृति के इस उपहार को
इस तरह से व्यर्थ मत गंवाओ।
यह पानी अनमोल है,
पानी से यह जीवन है।
पानी से ही संचालित यह जहान है।
इसको बर्बाद मत करो,
पानी से धरा है,और धरा से-
यह जंगल पर्वत-पठार-झरना।
इसी पानी से है, धरा में हरियाली,
और पेड़ों की शीतल छाया।
जहाँ होंगे पेंड़,जहाँ होंगी छाया,
वहीं बसेरा करेंगे ये प्यारे परिंदा।
जहाँ पर ये चह-चहाएंगे,नवगीत गाएंगे,
मानव जीवन में खुशहाली आएगी।
कोई जीव-जन्तु या कोई परिंदा-
प्यासा नही होगा,हताशा नही होगा।
धरा हमेशा हरा-भरा रहेगा।
पेड़ों में फुल खिलेंगे,फल लगेंगे,
और फिर एक नई सुबह और एक-
नये दिन की शुरआत होगी।
पर!कब?और कैसे?
जब हम स्वयं इस पानी की,
अहमियत को समझेंगे।
और इसे बर्बाद होने से बचा पाएंगे।

— अशोक पटेल “आशु”

*अशोक पटेल 'आशु'

व्याख्याता-हिंदी मेघा धमतरी (छ ग) M-9827874578