गुड़ का बाप कोल्हू
गुड़ का बाप कोल्हू यह समाज मे आमतौर पर प्रयोग होने वाली कहावत हैं। यह कहावत समाज मे लगभग हर जगह घटित हो रही हैं । गुड़ का बाप कोल्हू का मतलब जिस प्रकार कोल्हू मे गन्ने की पेराई करके उसका रस निकाले बिना गुड़ बन ही नही सकता हैं। मतलब कोल्हू के बिना गुड़ बनना असंभव है। उसी प्रकार समाज मे भी कुछ लोग हैं जो हर विवाद की जड़ होते है, ये लोग विभिन्न विवादों को जन्म देते रहते है,ये अगर ना हो तो विवाद होना संभव ही नही है। ऐसे लोग समाज मे “मंथरा” का काम कर रहे है।ये लोग अपने दुःख से नही बल्कि दूसरो के सुख से परेशान हैं ।
समाज में ऐसे लोगो की कमी नही है । ऐसे लोग समाज में हर जगह व्याप्त हैं,जो समाज मे कोल्हू का काम कर रहे हैं।उनके बिना समाज मे कोई वाद – विवाद हो ही नही सकता। ऐसे लोग समाज मे इंसान के नाम पर धब्बा होते है।इनमे इंसानियत नाम की कोई चीज नही होती हैं । इन्हीं लोगों की वजह से समाज में शांति स्थापित नही हो पा रही हैं । ये लोग समाज मे एक दूसरे से विवाद होने पर उसमे बीच मे पंहुचकर एक तरफ से जोर लगाकर विवाद को काफी हद तक बढ़ा देते हैं । और उसके बाद दूर बैठकर अपने जैसे दो चार लोगों के साथ मजे लेते है। इन्ही लोगो की वजह से समाज आज खतरे में हैं । समाज में ऐसे लोग गन्दगी हैं ।जिसे मिटाना अति आवश्यक है।
— प्रशांत अवस्थी “रावेन्द्र भैय्या”