स्वास्थ्य

आहार कितनी बार?

‘हमें दिन में कितनी बार खाना चाहिए?’ यह एक आम प्रश्न है। अनेक लोग कहते हैं कि इसमें कोई नियम बनाना ठीक नहीं, जब भी भूख लगे खा लेना चाहिए और जब भी प्यास लगे पी लेना चाहिए। परन्तु यह विचार उचित नहीं, क्योंकि हमें भूख तो प्रायः हर समय लगी ही रहती है। पर वह भूख नहीं, भुखास होती है अर्थात् कुछ खाने की इच्छा या कच्ची भूख। ऐसी भूख के समय खाना अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करना है। उस समय केवल पानी पी लेना चाहिए।

भोजन कितनी बार करें इस बारे में एक बड़ी सुन्दर कहावत है- एक बार खाये योगी, दो बार खाये भोगी, तीन बार खाये रोगी। यह कहावत हमारा मार्गदर्शन कर सकती है।
योगी, संन्यासी, साधु-सन्त सामान्यतया एक बार ही खाते हैं। संन्यासियों के लिए एक बार ही भोजन करने का विधान है। इससे अधिक खाना संन्यास धर्म के प्रतिकूल होता है। मेरे एक संन्यासी मित्र हैं जो परिवार के साथ रहते हुए भी केवल एक बार खाते हैं और पूर्ण स्वस्थ हैं। वे अपना भोजन सूर्यास्त से पहले कर लेते हैं। य़द्यपि दिन में केवल एक बार भोजन करने वालों के लिए भोजन करने का सर्वश्रेष्ठ समय दोपहर 12 बजे से 1 बजे तक है। इसका रहस्य यह है कि भोजन को पचने और मल बनने में 14 से 16 घंटे लगते हैं। इसलिए प्रातःकाल 4-5 बजे शौच जाने से एक बार में ही उनका पेट पूरी तरह साफ हो जाता है।

कहावत के अनुसार भोगी अर्थात् गृहस्थों को दिन में केवल दो बार भोजन करना चाहिए। बहुत से गाँवों में आज भी इस परम्परा का पालन किया जाता है। किसान सुबह होते ही खेतों पर काम करने चले जाते हैं। वहाँ 10-11 बजे उनकी घरवाली भोजन लेकर आती है, जिसे कलेवा कहते हैं। इसके बाद वे शाम को सूर्यास्त के समय लगभग 6 बजे भोजन कर लेते हैं और फिर कुछ नहीं खाते। इस समय किया हुआ भोजन सोने के समय तक पूरी तरह पच जाता है अर्थात् उदर खाली हो जाता है, इसलिए उनको गहरी नींद आती है।

कहावत के तीसरे भाग के अनुसार दो बार से अधिक खाने वाला सदा रोगी ही बना रहता है। यह पूरी तरह सत्य है। पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव में आकर हम सुबह पेट भरकर जलपान करते हैं, फिर दोपहर को 2-3 बजे लंच करते हैं और अन्त में रात को 10-11 बजे के बीच भारी डिनर लेते हैं। इस गलत जीवन शैली के कारण ही वे सदा रोगी बने रहते हैं और डॉक्टरों के चक्कर काटते व दवायें लेते रहते हैं।

यदि केवल दो बार के भोजन से हमारा काम न चल सके, तो हम इस जीवन शैली को थोड़ा सुधारकर एक स्वस्थ रूप दे सकते हैं। वह इस तरह कि जलपान प्रातः 8-8.30 बजे करने के बाद दोपहर 1-1.30 बजे लंच और सायं 7-7.30 बजे डिनर कर लें। इससे सोने से पहले ही भोजन को पचने का पूरा समय मिल जायेगा और हमारे स्वास्थ्य को कम हानि होगी।

लेकिन यह आवश्यक है कि हमारा रात्रि भोजन बहुत हल्का हो। इस सम्बंध में एक कहावत और कही जाती है- ”नाश्ता राजकुमार की तरह, दोपहर का भोजन राजा की तरह और रात्रि का भोजन रानी की तरह करना चाहिए।“ इसका तात्पर्य है कि नाश्ता और डिनर हल्के अर्थात् सुपाच्य होने चाहिए। दोपहर को आप अपनी रुचि की वस्तुएँ खा सकते हैं।

प्राकृतिक चिकित्सालयों में रोगियों को तीन बार ही भोजन करने की अनुभति होती है। प्रातःकालीन जलपान में केवल फल और दूध या मठा (छाछ) लेने के लिए कहा जाता है। दोपहर 1 बजे और सायं 7 बजे सामान्य भोजन कराया जाता है, लेकिन रात्रि को भूख से थोड़ा कम खाने की सलाह दी जाती है। भोजन में भी वस्तुएँ बहुत सुपाच्य रखी जाती हैं। इस भोजन पद्धति से रोगी स्वास्थ्य की ओर अग्रसर होने लगता है।

सार रूप में कहा जा सकता है कि हमें सदा रोगी बने रहने से बचने के लिए या तो केवल दो बार ही भोजन करना चाहिए या फिर तीनों बार हल्की और सुपाच्य वस्तुएँ ही ग्रहण करनी चाहिए।

— डॉ. विजय कुमार सिंघल
चैत्र शु. 7, सं. 2081 वि. (15 अप्रैल 2024)

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com