सामाजिक

बच्चों को दें अच्छी परवरिश

बीते कुछ वर्षों में बच्चों के द्वारा घटित कुछ ऐसी हृदय विधायक घटनाएं देखने को मिली है जिन्हें देखकर लगता है कि क्या बचपन का भी अपराध की दुनिया में प्रवेश हो गया है? दिल दहला देने वाली यह घटनाएं बार-बार दुनिया के लोगों से प्रश्न करती हैं कि इन घटनाओं के पीछे क्या वास्तव में बच्चे जिम्मेदार हैं  उदाहरण के लिए, 20 जनवरी 2018 के दिन हरियाणा के यमुनानगर स्थित एक स्कूल में कम उपस्थिति के कारण मिली सजा से नाराज होकर 12वीं की कक्षा के छात्र ने अध्यापक अभिभावक एसोसिएशन की बैठक के दौरान प्रिंसिपल को गोलियों से छलनी कर दिया। 26 नवम्वर 2023 को इन्दौर के एक स्कूल में एक बच्चों के आपसी झगड़े में एक बच्चे पर 106 बार राउंडर से हमला कर घायल किया।

इस तरह की और न जाने कितनी घटनाएं हमारे देश में घट रही हैं सवाल यह उठता है कि छोटी सी उम्र में इतनी भयानक हिंसात्मक  कार्रवाई करने के पीछे उन्हें प्रेरणा कहां से मिलती है क्या उन्हें उचित नैतिक शिक्षा नहीं दी जा रही है क्या उन पर माता-पिता परिवार या अध्यापकों द्वारा उचित व्यवहार नहीं किया जा रहा है क्या हमारे शिक्षक प्रणाली जिम्मेदार है या सिनेमा, इंटरनेट,मोबाइल ,टीवी इसके लिए जिम्मेदारी हैं उसमें ऐसे दृश्य दिखाए जाते हैं जिससे वह उकसाये  तथा उन्हें यह कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं । बच्चों में बढ़ती हुई हिंसा के लिए चाहे जो भी कारण जिम्मेदारी हों, लेकिन सबसे बड़ा कारण माता-पिता का अपने बच्चों को ऊपर ध्यान न देना है । माता-पिता व परिवार के सदस्यों की जिम्मेदारी  है कि जितना ध्यान अपने बच्चों का शिशु अवस्था में रखते थे उससे भी ज्यादा ध्यान किशोरावस्था में रखा जाए । बच्चे क्या देखते हैं ,क्या सुनना पसंद करते हैं ,क्या करते हैं, किस  संगति में है ?उनके मित्र कौन हैं? उनके शारीरिक, मानसिक , बौद्धिक  विकास में क्या परिवर्तन हो रहा है, यह भी जानना आवश्यक है कि उनके व्यवहार में निरन्तर क्या परिवर्तन हो रहा है। कितना झूठ बोलते हैं और क्या बात छुपाते है । बच्चे कितना दूसरों का सहयोग करते हैं यह सब जानना आवश्यक है। इसके लिए अभिभावक  बच्चों के साथ समय बिताएं उनसे बातें करें, उनके कार्यों में सहयोग करें ,उनके व्यवहार पर लगातार दृष्टि बनाए रखें। बच्चों को मारना , डांटना, अभद्र व्यवहार करना जबरन उनसे कोई कार्य करवाना आदि सभी व्यवहार बच्चों के ऊपर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। बालक वही व्यवहार करते हैं ,जो अभिभावकों को् करते देखते हैं तो उसे बहुत जल्दी अपने जीवन में  सीख लेते हैं, क्योंकि बच्चों की ग्रहण शकित बहुत-अधिक होती है। जैसा देखते हैं वैसे ही उसकी नकल करके सीखते हैं उन्हें यह आभास नहीं होता कि सही है या नहीं । लेकिन लगातार आक्रामक दृश्य देखने से वे अपने ऊपर से नियंत्रण खो बैठते हैं। आजकल माता-पिता का ध्यान बच्चों को सिर्फ अच्छी शिक्षा तथा उन्हें पर्याप्त सुविधाएं  उपलब्ध कराना ही रहता है वह भूल जाते हैं कि बच्चों को उनके लिए मुख्य रूप से समय की आवश्यकता है। ताकि वह उनसे अपनी बात साझा  कर सके। माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पाने का परिणाम यह होता है की माता-पिता और बच्चों के बीच लगातार फासला बढ़ता जा रहा है  वात्सल्य और स्नेह के अभाव में बच्चे असंतुष्ट रहने लगे है । जिससे उनमें नकारात्मक विचार पनपने लगते है। इससे उपजी असहनशीलता बच्चों को हिसंक बनने को मजबूर कर देती है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार माता-पिता के अत्यधिक व्यस्त रहने से बच्चों की मनोभावना को समझने वाला कोई नहीं होता है ऐसे में बच्चे मोबाइल और कंप्यूटर में व्यस्त होने लगते हैं । इसके अतिरिक्त मीडिया द्वारा दिखाए जा रहे नकारात्मक दृश्य बच्चों के कोमल मस्तिष्क पर अपना प्रभाव डालते  है क्योंकि आजकल बच्चों का अधिकांश समय टीवी, फिल्म, इंटरनेट, मोबाइल गेम्स ,वीडियो गेम्स आदि में व्यतीत होता है। ऐसे में अपराधी कार्यक्रम व एडल्ट कंटेंट तक उनकी पहुंच बहुत आसान हो गई है ।उसका यह परिणाम हुआ , कि बच्चे युवा होने से पहले ही जानने लगे हैं, जो उन्हें अभी नहीं जानना चाहिए था ।अपनी दिनचर्या में व्यस्त अभिभावकों के पास इतना भी समय नहीं होता है , कि बच्चों की आवश्यकता को जान सकें। वे तो बस बच्चों के परीक्षा परिणाम जानने के इच्छुक होते हैं और उसी से ही अंदाजा लगाते हैं कि उनका बच्चा कितने प्रगति कर रहा है । बच्चों पर ध्यान न देने से उन्हें अपनी मनमर्जी करने की पूरी छूट होती है। अतः विभिन्न गतिविधियों के अनुसार वे व्यवहार करने का प्रयत्न करते हैं । बच्चों द्वारा दी जाने वाली जो भी हिंसात्मक घटनाएं प्रकाश में आई हैं वह ज्यादातर स्कूलों में घटित होते हुए देखी गई है। शिक्षा के मंदिर में इस तरह की घटनाओं के बढ़ने के पीछे हमारी शिक्षा प्रणाली भी जिम्मेदार है। प्रतिस्पर्धा के इस युग में बच्चों के ऊपर सफलता हासिल करने का दबाव लगातार बनाया जाता है। ऐसे में असफल होने पर भी अपना धैर्य,व  संयम खो  देते हैं। सफलता में थोड़ा सा भी असफल होने व प्रतियोगिता की दौड़ में पीछे रह जाने वाले बच्चों को ऐसे लोगों की आवश्यकता होती है जो उनकी काउंसलिंग कर सके उन्हें समझा सकें। उन्हें सही ढंग से मेहनत करने, प्रयास करने व आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर सके। एक तरह देखा जाए तो प्रतियोगिता की अंधी दौड ने बच्चों का बचपन ही छीन लिया है।  ऐसी स्थिति में बच्चे जो परिश्रम करते हैं उनका लक्ष्य केवल सबसे प्रथम आना होता है , ना कि ज्ञान अनुभव अर्जित करना । उसका यह परिणाम होता है कि प्रतियोगिता के कारण बच्चे प्रतिभाशील,व सृजनशील   नहीं बन पाते। बल्कि अपनी पठन सामग्री को मात्र रटने वाले होकर रह जाते हैं ।ऐसे बच्चों में विषय सामग्री को समझने की अधिक क्षमता नहीं होती है।प्राय बच्चों के कोमल मन पर अनेक प्रकार के डर उत्पन्न हो होते हैं जो उन्हें गलत कार्य करने, झूठ बोलने, हिसंक  कार्रवाई करने तथा आत्मघाती कदम उठाने के लिए प्रेरित करते हैं । जैसे शिक्षक द्वारा उनके माता-पिता को शिकायत करने और माता-पिता द्वारा शिक्षक से अपने बच्चों की शिकायत करने का भय भी बच्चों में बहुत होता है। बच्चों में होमवर्क पूरा न करने का भय भी  होता है। जिसके प्रमुख कारण अपने सहपाठियों के सामने दंडित होना या अपमानित होना होता है। कुछ बच्चों को अपने शिक्षकों से भय होता है   जिसके कारण वह अपने शिक्षक व माता-पिता से झूठ बोलते हैं और किसी भी तरह की सजा से बचना चाहते हैं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार माता-पिता, शिक्षक, बच्चों को सफलता का ही पाठ पढ़ाते हैं बच्चों को असफलता का सामना करना नहीं सिखाते जिससे असफल होने पर या कोई गलती होने पर बच्चे उसे सहन नहीं कर पाते । यही नहीं यदि उनके अनुसार कोई कार्य नहीं होता तो उसे भी वह सहन नहीं कर पाते और आक्रामक होने लगते हैं या छोटी-छोटी बात पर अपना धैर्य खोने लगते हैं । अतः यह आवश्यक है कि बच्चों को भी सफलता ,असफलता के विषय में सही प्रकार से जानकारी दें। अपनी असफलता को सफलता की सीढ़ी बनाने का तरीका ,जीवन जीने का सही माध्यम ,सीखने तथा बच्चों की समय-समय पर काउंसलिंग भी की जाए उनकी समस्याओं को सुना  समझा जाए यह भी आवश्यक है कि माता-पिता अपने बच्चों को पर्याप्त समय दें उनकी शिकायतों को ध्यान से सुनें और उनका उचित समाधान करें। उनके साथ प्यार से रहे कभी-कभी बच्चों के व्यवहार में उनके मित्रों का भी योगदान होता है। इसलिए विद्यालय में शिक्षक भी विद्यार्थियों से संवाद के द्वारा उनकी काउंसलिंग करें। बच्चों द्वारा गलती करने पर उन्हें डांटने  की वजह प्यार से उसे न दोहराने के विषय में समझाएं माता-पिता और शिक्षक बच्चों में सहनशीलता का गुण विकसित करें साथ ही सफलता का उत्सव मनाने के साथ उन्हें असफलता का सामना करना भी सिखाए। बच्चों को अनेक उदाहरणों के माध्यम से कहानी, अच्छी प्रेरणा देने वाले वीडियो आदि दिखाए जाएं। जिससे उन्हें अच्छा कार्य करने की प्रेरणा मिल सके और वह सही व गलत कार्यों में फर्क महसूस कर सके।

निष्कर्ष

अतः बच्चों का मन बहुत कोमल होता है उनपर ध्यान देकर उनसे प्रेम के साथ अच्छी बातें सिखाई जा सकती है। अच्छा कार्य करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाए । गलतियों से सबक लेने की प्रेरणा देनी चाहिए ।बच्चों को आगे बढ़ाने में अपना पूर्ण सहयोग दिया जाए,लेकिन साथ में उन्हें आत्मनिर्भर बनाने,  मेहनत करते हुए आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए । ऐसा करने पर ही बच्चों के कदम गलत दिशा में बढ़ने से रूक सकेंगे और उनका समग्र विकास संभव हो सकेगा।तथा भावी देश के कर्णधार बन सकेंगे।

— डॉ. पूर्णिमा अग्रवाल

डॉ. पूर्णिमा अग्रवाल

मैं अम्बाह पीजी कॉलेज में हिंदी की सहायक प्राध्यापिका के रूप मैं पदस्थ हूँ। मेरा निवास स्थान सदर बाजार गंज अम्बाह, मुरैना (म.प्र.) है।

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