यात्रा वृत्तान्त

करेरी झील यात्रा

कुता या गाइड

समय सुबह के 3:45 दिनांक 16 अप्रैल 2024 और हम चल पड़े धर्मशाला के सिद्ध बाड़ी से कांगड़ा जिले की प्रसिद्ध झील करेरी की यात्रा पर। यह झील ताजे पानी की झील होने के कारण बहुत प्रसिद्ध है। क्योंकि हम पहली बार करेरी झील की यात्रा पर जा रहे थे इसलिए हमें रास्ते का पूर्ण ज्ञान नहीं था। किसी  अपने दोस्त से रास्ते का पता किया तो उन्होंने बताया कि एक रास्ता वाया शाहपुर होकर जाता है और दूसरा धर्मशाला बस स्टैंड से नीचे वाया घरोह होकर जाता है, दोनों रास्ते ठीक हैं।  इसलिए हमने भी घरोह वाले रास्ते को चुना और अपनी गाड़ी में चल दिए सुबह-सुबह 3:45 पर। 

जैसे ही हम घेरा से 2 किलोमीटर पीछे थे तो आगे बड़े-बड़े पत्थर सड़क पर गिरे हुए थे, क्योंकि हम तीन लोग थे तो इसलिए दो लोगों ने पत्थरों को बड़ी मुश्किल सड़क से एक तरफ किया और अपनी कार से आगे चल दिए। अभी थोड़ा सा ही आगे गए  थे कि सड़क में फिर से पत्थर गिरे हुए मिले, उन पत्थरों को भी मुश्किल से हमने इधर-उधर करके कार को ज्यूँ त्यूं  आगे निकला। साथ में एक खड्ड बह रही थी जिसमें कि बहुत ज्यादा पानी था और बहुत ज्यादा साएं–साएं की आवाज आ रही थी। घेरा से आगे जैसे ही हम आगे बढ़े तो रास्ते में खड़ी चढ़ाई और कैंचियों को देखकर थोड़े से शकपका गए, कि कहीं आगे रास्ता और भी खतरनाक ना हो। जैसे तैसे हम आगे बढ़ते गए तो करेरी स्टेशन से लगभग डेढ़ किलोमीटर पीछे एक बहुत बड़ा लैंड स्लाइड हुआ था। जिसके कारण रोड पूर्णता बंद हो गया था। क्योंकि अभी सुबह के 6:00 रहे थे तो उस सड़क मार्ग को खोलने के लिए कोई भी वहां मौजूद नहीं था। हमने अपनी गाड़ी को पीछे की तरफ मोड़ा और लगभग आधा किलोमीटर पीछे खड़बी नामक स्थान पर पार्क कर दिया और यहां से शुरू हुई हमारी पैदल यात्रा करेरी झील के लिए। 

सबसे पहले हम करेरी नामक जगह पर पहुंचे जहां से हमें एक कुत्ता साथ में मिल गया। वह कुत्ता हमारे साथ-साथ चलने लगा तो हमने भी कुत्ते को दो-चार बिस्किट खाने के लिए दे दिए। किसी व्यक्ति से हमने पूछा कि करेरी झील के लिए कहां से रास्ता जाता है तो उन्होंने बताया कि लगभग 3 किलोमीटर दूर एक पुल आएगा नौहली नामक स्थान पर, जहां से आपको ऊपर के लिए रास्ता चढ़ने के लिए मिलेगा। अब अब हम तीन के बजाय चार हो गए थे क्योंकि कुत्ता हमारे साथ-साथ चला था और हमें कुत्ते के नाम का पता नहीं था इसलिए हमने कुत्ते का नाम टाइगर रख दिया। जैसे हम उसको टाइगर के नाम से पुकारते हैं वह भी पूंछ हिलाता हिलाता हमारे साथ-साथ चल देता। लगभग सुबह के 7:00 बजे हम उस पुल के पास पहुंच गए जहां से हमें करेरी झील के लिए खड़ी चढ़ाई वाला रास्ता दिखा। वहां पर तीन-चार दुकाने थी और वहां हमने चाय पी और अपनी यात्रा शुरू कर दी। वहां पर एक साइन बोर्ड लगा हुआ था जिस पर लिखा हुआ था करेरी झील में आपका स्वागत है और यह झील 3110 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। 

दुकानदार ने कहा कि क्या आप आज ही वापिस आएंगे?  हमने कहा कि हम जरूर वापस आएंगे आज ही ।तो उन्होंने कहा कि आप नहीं आ सकते हैं रास्ता बड़े ऊपर तक जाता है, एक दिन में आना मुश्किल होता है। हमने कहा चलिए जो भी बात होगी देखा जाएगा। बातें करते-करते हम जब आधा किलोमीटर दूर पहुंचे ही थे तो हमें ऊपर से वापस आते हुए दो व्यक्ति मिले जो कि लगभग 55 से 60 वर्ष की उम्र के लग रहे थे। हमने उनसे बातचीत की तो उन्होंने बताया कि हम डेढ़ किलोमीटर ऊपर से ही वापस आ गए हैं क्योंकि ऊपर एक बहुत खतरनाक नाला बह रहा है जिस पार करना हमारे लिए असंभव है। इसलिए हम वापस आ गए। मैंने उनके बोलचाल से थोड़ा सा अंदाजा लगाया और मैंने पूछा क्या आप बिलासपुर या हमीरपुर से हैं तो उन्होंने बताया कि वो हमीरपुर से हैं। उन्होंने कहा कि वह सुबह 6:00 बजे ट्रैकिंग के लिए चले थे लेकिन अब वापस आ रहे हैं, तो मैंने उनसे कहा कि चलिए आप हमारे साथ चलिए, हम आपका साथ निभाएंगे। वह हमारी बातें मानकर हमारे साथ चल तो  दिए लेकिन लगभग 5 मिनट चलने के बाद ही वह दोनों व्यक्ति मुझे आवाज लगाते हुए बोले कि ठीक है श्रीमान जी हम वापिस जा रहे हैं । हम नहीं जा सकते हैं, तो मैंने भी उन्हें अलविदा कहा और हम अपने रास्ते में आगे चल दिए। फिलहाल हमें रास्ता ठीक-ठाक ही लग रहा था। जैसे ही हम सड़क से लगभग डेढ़ किलोमीटर ऊपर झील कैफे पहुंचे, तो वहां पर वह खड्ड रूपी नाला हमने अपने सामने पाया। वहां पर एक व्यक्ति और खड़ा था तो हमने उससे पूछा कि क्या कोई और लोग भी ऊपर गए हैं,तो उन्होंने कहा कि पिछले रात को बहुत भयंकर बारिश हुई थी ,जिसकी वजह से जलस्तर बहुत बढ़ गया है और आज फिलहाल अभी तक कोई भी व्यक्ति ऊपर की तरफ यात्रा पर नहीं गया है। थोड़ी देर सोच विचार करने के बाद हमने मन बनाया की हम जरूर करेरी झील तक पहुंचेंगे और हमने अपने जूते और मौजे उतारे और उस खतरनाक खड्ड रूपी नाले को जैसे– तैसे पर किया। टाइगर ने उसे नाले को क्रॉस करने की कोशिश की लेकिन उसे सफलता हाथ नहीं लगी। हमने भी अपने जूते पहने और टाइगर को कहा कि यहां तक हमारा साथ निभाने के लिए शुक्रिया । अब आप वापिस जाओ और हम अपनी मंजिल की तरफ आगे बढ़ गए। अभी हम लगभग एक किलोमीटर ऊपर ही चढ़े होंगे कि टाइगर वापस हमारे साथ चल पड़ा, न जाने उसने कैसे वह नाला क्रॉस किया और वह बड़ा खुशी-खुशी से हमारे साथ हमसे आगे आगे हमें रास्ता दिखाने के लिए चला रहा। हम थोड़ी देर विश्राम के लिए बैठ गए तो हमने टाइगर को टाइगर बिस्किट खिलाए। फिर हम अपनी यात्रा की तरफ ट्रैकिंग पर चल पड़े। क्योंकि चढ़ाई खड़ी थी और रास्ता ऊबड़– खाबड़ था और अभी तक हमें रास्ते में कोई साइन बोर्ड भी नहीं मिला था कि रास्ता इस तरफ से है ! इसलिए हम लोगों ने हाथ में एक-एक डंडा भी ले लिया सहारे के लिए ताकि थकान ज्यादा महसूस ना हो। जैसे जैसे हम आगे बढ़ते गए रास्ते में दुकाने भी मिलती गई। दुकानदार से बातचीत करने के बाद हम यात्रके लिए आगे बढ़ते रहे। क्योंकि अब धूप निकल चुकी थी तो पसीना पढ़ना स्वाभाविक था, इसलिए हमने अपनी जैकेट उतार कर अपने बैग में डालकर, अपनी मंजिल की तरफ आगे बढ़ गए। अब हम सफर में तीन नहीं चार लोग थे हमारे साथ टाइगर भी था। लगभग 2 घंटे चलने के बाद हमें आगे एक और बहुत ही खतरनाक और बहुत बड़ा खड्ड रूपी नाला दिखाई दिया जहां से रास्ते का अनुमान लगाना असंभव था कि आगे किस तरफ रास्ता होगा ? टाइगर ने वह नाला क्रॉस किया और हम लोग भी टाइगर के पीछे-पीछे उसे नाले को एक दूसरे का हाथ पकड़ कर क्रॉस करने के बाद आगे बढ़ गए। रास्ते के बीच-बीच में हम बातों से एक दूसरे को साहस देते रहे। 

थोड़ी देर विश्राम करने के बाद ज्यों ही हम आगे बढ़े, लगभग आधा किलोमीटर बाद रास्ते में एकदम से धुंध इस तरह से छा गई जैसे मानो सारे बादल ही हमारे ऊपर उमड़  पड़े हों। हमको वापस अपनी जैकेट बैग से निकाल कर पहननी पड़ी ।क्योंकि मौसम बहुत ठंडा हो चुका था। अचंभित करने वाली बात यह थी कि अभी तक हमें कोई भी व्यक्ति ऊपर से नीचे की तरफ आने वाला नहीं मिला था। लगभग 2 किलोमीटर और चलने के बाद तीन लड़के और तीन लड़कियां हमें वापस आते हुए मिले। जैसे ही उनसे बातचीत हुई, उन्होंने बताया कि आगे एक टेंट है जिसमें हम पिछली रात को रुके थे क्योंकि पिछली रात को भयंकर बारिश हुई थी और आगे एक और नाला है जिसमें पानी का बहाव बहुत तेज है तो हम उस बहाव को देखते हुए डर गए और अब वापिस आ रहे हैं। उनकी बातें सुनकर मेरे दो साथियों की हिम्मत थोड़ी सी टूट गई और वह भी कहने लगे कि हम भी वापस चलते हैं। क्योंकि जान तो सबको अपनी-अपनी प्यारी होती है। मैंने उनसे कहा की हिम्मत नहीं हारनी चाहिए, क्योंकि हम तीन नहीं हमारे साथ टाइगर भी है तो हम चार हैं और रास्ते की हमें कोई अब फिक्र नहीं क्योंकि टाइगर हमें रास्ता खुद-ब-खुद दिखा रहा है। 

थोड़ा विश्राम करने के बाद हम फिर से अपनी मंजिल की तरफ बढ़ चले। आगे हमें एक टेंट दिखाई दिया तो दिल में थोड़ी सी हिम्मत आई और वहां पर दुकानदार से जब पता किया तो उन्होंने कहा कि आगे एक पुल आएगा और उसके बाद लास्ट पॉइंट पर आपको खड्ड क्रॉस करनी पड़ेगी और उसके बाद झील है। उसकी बातें सुनकर हमें थोड़ी हिम्मत आई। हम आगे बढ़ते गए और चार लड़के हमें रास्ते में करेरी झील से वापस आते हुए मिले। क्योंकि हम बहुत थक चुके थे इसलिए हम एक बहुत बड़े पत्थर पर विश्राम करने बैठ गए थे, हमने उन लड़कों से बात बातचीत की तो उन्होंने बताया कि अभी आपने आधा रास्ता ही चढ़ा है। अभी इसके बाद इतना ही रास्ता और है और अब खड़ी चढ़ाई है। उन्होंने यह भी बताया कि  झील से लगभग 1 किलोमीटर नीचे बेस कैंप है, जहां पर चार-पांच टेंट लगे हुए हैं और वहां पर ठहरने की व्यवस्था भी है। अब हमने अपनी यात्रा शुरू कर दी, यहां पर हमने पाया कि यह जो खड्ड है यह करेरी झील से ही निकले हुए पानी  और उसके आसपास के नालों से बनी हुई है। रोमांचकारी इस यात्रा में एक पल में कहीं धूप तो दूसरे पल में गहरी धुंध तथा अगर ऊपर की तरफ नजर डालें तो सुंदर-सुंदर बुरांश के फूल एवं देवदार के बहुत बड़े-बड़े पेड़ दिखाई देते हैं। प्राकृतिक सुंदरता को देखते ही हमारा मन प्रफुल्लित और आनंदित हो जाता है। अब हम पहाड़ के टॉप पर लगभग पहुंच चुके थे, हमें पीछे मुड़कर देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा था। दोपहर के 1:30 बजे हम उसे खड्ड के किनारे बड़े-बड़े पत्थरों पर बैठकर अपना भोजन कर रहे थे तो ऊपर से हमें तीन व्यक्ति आते हुए और मिले। जब  हमने उनसे बात की और पूछा कि अब कितना दूर है तो उनमें से एक व्यक्ति ने कहा कि यह हमारे साथ गाइड है आप इसे पूछ सकते हैं। जैसे ही मैंने उसे गाइड से पूछा कि ऊपर कैसा मौसम है और क्या हम आज वापिस आ सकते हैं तो उस इंसान ने हमें कुछ भी नहीं बताया। वह उन अपने दो सैलानियों के साथ नीचे की तरफ चुपचाप चला गया। हमने तब सोचा कि यह गाइड है यह तो पैसे लेता है ऊपर पहुंचाने के लिए। लेकिन बतौर इंसानियत क्या  वो हमें रास्ते के बारे में नहीं बता सकता था या मौसम के बारे में नहीं बता सकता था? इससे अच्छा तो हमारा टाइगर ही निकला जो हमारा पूरा साथ दे रहा था। हमारे लिए यह बहुत ही सोचनीय प्रश्न था।

 चलिए जो भी हुआ सो हुआ लेकिन हमने टाइगर (हमारा गाइड)के सहारे बाकी बचा रास्ता भी पूरा करने की ठान ली थी। झील से लगभग 3 किलोमीटर पीछे जब हम पहुंचे तो मेरे दोनों साथियों ने जवाब दे दिया कि अब हम इसके आगे नहीं जा सकते हैं। हमें इतनी ज्यादा थकान हो गई है कि हम अब वापिस ही जाएंगे। मैंने कहा जब हम इतनी ऊपर आ ही  गए हैं तो अब झील के दर्शन करके ही जाना चाहिए । मैंने जैसे कैसे उनका ध्यान  बातों में उलझा के, उनको हिम्मत बंधा के ,आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। बहुत मुश्किल से वह आगे चलने के लिए तैयार हुए। लगभग 1 किलोमीटर ही अभी हम चले हुए होंगे कि अचानक से हमारी आंखों के आगे अंधेरा छा गया ,चारों तरफ धुंध ही धुंध छा गई और एकदम से बारिश लगना शुरू हो गई। हमारे पास दो छाते थे, हमने वह निकाले और धीरे-धीरे आगे बढ़ना शुरू हो गए लेकिन बारिश इतनी तेज हो गई कि लगभग 3 मिनट बाद बड़े-बड़े ओले हमारे सिर पर पड़ने शुरू हो गए। अब बारिश कम और ओले ज्यादा पढ़ रहे थे तो मैंने उनको कहा कि जरूर ऊपर बर्फबारी हो रही होगी क्योंकि मौसम में बहुत ठंडक आ गई थी और तापमान गिर चुका था। उन्होंने फिर हिम्मत हारी और कहा कि अब हम इसके आगे नहीं जाएंगे और एक बहुत बड़े पत्थर के नीचे हम लोग खड़े हो गए। ऐसे मौसम को देखते हुए एक पल में मैं भी सोचने पर मजबूर हो गया कि हम गलत आ गए हैं, आज हम फंस चुके हैं। हमें वापिस जाने के लिए भी लगभग तीन घंटे का समय लगेगा क्योंकि हम बहुत थक चुके हैं। ऊपर से वापिस जाती बार हमें समय का भी विशेष ध्यान रखना होगा ,चूंकि रात होने वाली थीऔर उन नालों को क्रॉस करने के लिए हिम्मत भी चाहिए क्योंकि बारिश हो रही है तो जलस्तर कभी भी बढ़ सकता है। ऊपर झील के पास खास बात यह भी रही कि  जब तीन ही बज रहे थे तो हमको ऐसा प्रतीत हो रहा था कि लगभग छह बज गए हैं।ऐसे सारे प्रश्न मेरे मन में कौंध रहे थे? ओलावृष्टि थोड़ी सी कम हुई, तो मैंने उनको कहा कि चलो अब थोड़ी ही दूर है झील, तो हम वहां तक जाकर ही आते हैं! ऐसे मौके बार-बार नहीं मिलते हैं! इस सारे रास्ते में चलते-चलते मैंने करेरी झील के ऊपर एक कविता भी लिख डाली ।जो जो हमारे साथ हुआ ,थोड़ी-थोड़ी पंक्तियां जोड़कर मैने छोटी सी कविता लिखी जिसको मैं यहां पर शेयर कर रहा हूं।

अपनी बोली अपनी पछ्यान मितरो,

करेरी झीला चढ़दे समझो, निकली जांदे प्राण मितरो, करेरी झीला जो जाना जरूर मितरो,

रस्ता बड़ा खराब  पर इसजो,

कल राति पया बरखा रा दड़कया खूब मितरो,

लहासे ने हुई गई सड़क बंद मितरो,

करेरी सांजो इक बंदे बिना दूधे वाली चाअ पियाई मितरो,

फेरी शुरू हुई झीला जाने वाली चढ़ाई मितरो,

बदिया गल ए हुई मितरो,

इकी कुत्ते रस्ता दसने जो सौग अहां दी निभाई मितरो,

हूण धूप बी रस्ते च आई गई मितरो,

पसीने साडियां जैकटा खुलायियां मितरो,

नहौली जाइने थोड़ी हिम्मत आई मितरो,

सन सन खड्डा री आवाज़ आई मितरो,

फेरी शुरू हुई खड़ी चढ़ाई मितरो,

पैंतयां चढ़ी चढ़ी सांस गई फूली मितरो,

जंगा च हूण पीड निकली आई मितरो,

खड्डा रेयां पत्थरां पर छाल देयीके रस्ता लांघ्या मितरो,

 बड़ा रिस्की काम्म ये अहाँ कितया मितरो ,

कुते दी हिम्मता देयो दात मितरो,

तिना बी खतरनाक नाला सोचा कियां लांघया हूणो मितरो,

बड़ा कठन रस्ता करेरी झीला  जाने जो मितरो,

पर हिम्मत आहां बी नी हारी मितरो,

बाटा चली चली के ए कविता मैं बनाई मितरो,

झीला ले आइने तुहां जो फेरी मैं सुनाई मितरो,

3110 मीटर ऊंचाई ईसा झीला री मितरो,

बड़ा छैल नजारा करेरी झील रा मितरो।।

जैसे ही हम थोड़ी दूर गए, हमको बेस कैंप के टेंट नजर आए और हमारी जान में जान आई। परंतु एकदम से ही ओलावृष्टि फिर से इतनी तेज हो गई कि हमें चलना मुश्किल हो गया और हम एक टेंट में घुस गए जहां पर दो लड़के रर्जाइयां ओढ़ के सोए हुए थे। हमने उनसे बातचीत की तो उन्होंने कहा कि हम ₹1500 एक आदमी के ठहरने का लेते हैं और हमने उनसे मौसम के बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि पिछली रात को भी भयंकर बारिश हुई थी ।इसलिए आज ऊपर की तरफ बहुत कम लोगआए। तो आपको भी नीचे जाने में मुश्किल होगी। जैसे ही थोड़ी देर बाद वह ओलावृष्टि बंद हुई हम अपने बैग को पीठ पर लटका के करेरी झील की तरफ चल दिए। उन्होंने कहा कि झील यहां से लगभग आधा या एक किलोमीटर होगी। टाइगर आगे-आगे हमारे साथ चलता गया, छोटे-छोटे बर्फ के ग्लेशियर रास्ते में हमने लांघे तो सफर और रोमांचकारी हो गया। हमको हाथों और पैरों में बहुत ठंड महसूस हो रही थी तो वहीं पर टाइगर बर्फ के बीच में घुसकर अपने शरीर को खुजला रहा था। थोड़ी दूर चलने के बाद सामने हमें लाल रंग का एक मंदिर का टॉप नजर आया, फिर हम लोगों ने अंदाजा लगाया कि यह वही शिव मंदिर है जो करेरी झील के साथ स्थित है । इसका मतलब है कि हम अपनी मंजिल के बहुत नजदीक पहुंच चुके हैं। इसके बाद हमने फिर से नाला क्रॉस किया और उसके 5 मिनट बाद ही हम अपने गंतव्य स्थान समुद्र तल से लगभग 31110 मीटर ऊंचाई पर स्थित कांगड़ा जिले की प्रसिद्ध करेरी झील में पहुंच चुके थे। यह झील उत्तर पश्चिम धौलाधार पर्वत श्रृंखला के दक्षिण में ताज़ा पानी की झील है। क्योंकि हल्की-हल्की बारिश लगी हुई थी हमने सबसे पहले शिवजी के मंदिर में अपना शीश नवाया और अपने बैग को अंदर रखकर मंदिर के प्रांगण से झील के दर्शन किए। सामने बहुत ही सुंदर और मनमोहक झील और बर्फ से लदी हुई चोटिया हमारे मन को बहुत प्रफुल्लित कर रही थी । रोमांच का दृश्य इतना सुंदर था कि हमारी थकान चूर-चूर हो गई । हमसे आगे तीन लड़के जो लगभग 15 से 18 वर्ष की आयु के थे, वह भी झील के दर्शन करने आए थे जैसे ही हमने उनसे बातचीत की, तो उन्होंने बताया की जैसे हम लोग शिव भगवान के मंदिर में धूप अगरबत्ती कर रहे थे तो एकदम से बिजली गिरी और हमारे एक साथी के मुंह के पास ही वह बिजली गिरी। तो यह लड़का सहम गया। सच में ही वह लड़का डरा हुआ था ,हमने उसको हिम्मत दी कि कुछ नहीं होता है भगवान शिव  का नाम लो भगवान भोलेनाथ  सब की रक्षा करते हैं।वह तीनों लड़के अपने पूरे इंतजाम के साथ रात को यहां रहने आए थे। वह हमें कहने लगे कि क्या आप यहां रहेंगे, तो हमने बोला कि हम यहां से वापिस चले जाएंगे। उन्होंने बोला कि आपको नीचे जाने में मुश्किल हो सकती है क्योंकि मौसम फिर से खराब हो चुका है। हमने कहा कि हम यहां लगभग आधा घंटा रुकने के बाद यहां से निकल पड़ेंगे।  हमने वहां पर कुछ छायाचित्र अपनी स्मृति के लिए अपने फोन में कैद कर लिए। मैने वो कविता भी वहां पर पढ़कर अपने साथियों को सुनाई। तुरंत ही वहां पर हल्की-हल्की बर्फबारी शुरू हो गई जो कि हमारे मन को एक तरफ जहां आनंदित कर रही थी दूसरी तरफ इस चिंता में डाल रही थी कि हम क्या वापस नीचे सड़क में पहुंच भी पाएंगे या नहीं? टाइगर भी हमारे साथ-साथ ही यहां तक आया था ,उसने झील के चारों तरफ एक चक्कर लगाया और वापस मंदिर के प्रांगण में आ गया। जैसे ही बर्फबारी कम हुई ,हम लोगों ने दोबारा मंदिर में माथा टेका और वापिस अपनी मंजिल की तरफ चल दिए। क्योंकि यह ट्रैक लगभग 12 किलोमीटर का है लेकिन हमें  17 किलोमीटर का एक तरफा सफर करना पड़ा, जिसके लिए हमें लगभग 8 घंटे का समय लगा। करेरी झील में थोड़ा सा आराम करने के बाद 4:00 बजे हम वापिस उतरने के लिए चल पड़े और शाम के ठीक 7:30 बजे सड़क पर ,नौहली नामक स्थान पर पहुंच गए। क्योंकि अब अंधेरा हो चुका था इसलिए वहां दुकान बंद थी और हम इतने थक चुके थे कि आगे चलना हमारे लिए मुश्किल हो गया था। हमने वहां पर 10 मिनट आराम किया और फिर सड़क सड़क के रास्ते वापस खडबी की तरफ चल दिए। इस 5 किलोमीटर को चलने के लिए हमने लगभग 1 घंटा और लगा दिया। जैसे ही हम करेरी पंचायत पहुंचे वहां पर एक दुकान पर बैठकर हमने चाय की चुस्कियां ली ।वहां पर चाय का एक कप ₹30 का मिला। लेकिन चाय पी के हमें थोड़ी सी सफूर्ती  का अनुभव हुआ। हमने टाइगर को फिर से बिस्किट खाने को दिए और उसका शुक्रिया किया ,उसने भी पूंछ हिला के हमें धन्यवाद दिया। ऐसा गाइड हमको पहली बार मिला था।  इसके आगे हमने लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर और जाना था, जहां पर वह रास्ता अवरुद्ध था। दुकानदार से पूछने पर पता लगा कि दिन में रास्ता खोल दिया गया है, तभी बाहर एक टैक्सी वाला रुका, तो हमने उससे पूछा कि क्या आप हमें वहां तक ले चलेंगे लगभग डेढ़ किलोमीटर तो उसने बोला ठीक है मैं आपको वहां तक पहुंचा दूंगा। चाय पीने के बाद हम टैक्सी में बैठकर अपनी गाड़ी तक गए इसके बाद अपनी गाड़ी में बैठने के बाद हमने 10 मिनट आराम किया और वापस धर्मशाला रात के लगभग 10:30 बजे अपने घर पर पहुंच गए। करेरी झील एक बहुत ही सुंदर एवं आकर्षक मन को लुभाने वाला स्थान है। वहां पर स्थित शिव मंदिर में पुजारी नहीं था, उन तीन लड़कों ने हमें बताया कि जन्माष्टमी/राधाष्टमी को यहां बहुत से श्रद्धालु आते हैं उस दिन यहां पुजारी होता है। मई महीने में बहुत से लोग करेरी झील की ट्रैकिंग करते हैं। वैसे तो सब लोगों को वहां पर जाना चाहिए लेकिन विशेष कर बच्चों के साथ और औरतों के साथ कुछ इस तरह से अपना कार्यक्रम बनाएं ताकि एक रात को वहां ऊपर ठहर सके और  दूसरे दिन वापिस आएं। रास्ता जरूर कठिन है लेकिन रोमांचकारी भी उतना ही है। ट्रैकिंग करने वालों के लिए तो बहुत ही आनंददाई रास्ता है ऊपर से प्रकृति की अनुपम छट्ठा दिल को एक ऐसा सुकून देती है जिससे शरीर का  रोम रोम प्रफुल्लित हो उठता है। कुल मिलाकर हमारा करेरी झील का ट्रैकिंग टूअर बहुत ही अच्छा रहा।

— डॉ. जय महलवाल

डॉ. जय महलवाल

लेफ्टिनेंट (डॉक्टर) जय महलवाल सहायक प्रोफेसर (गणित) राजकीय महाविद्यालय बिलासपुर कवि,साहित्यकार,लेखक साहित्यिक अनुभव : विगत 15 वर्षो से लेखन । प्रकाशित कृतियां : कहलूरी कलमवीर,तेजस दर्पण,आकाश कविघोष ,गिरिराज तथा अन्य अनेक कृतियां समाचार पत्रों एवम पत्रिकाओं में प्रकाशित प्राप्त सम्मान पत्रक या उपाधियां : हिंदी काव्य रत्न २०२४, कल्याण शरद शिरोमणि साहित्य सम्मान२०२२, कालेबाबा उत्कृष्ठ लेखक सम्मान२०२२,रक्तसेवा सम्मान २०२२ 22 बार रक्तदान कर चुके हैं। (व्यास रक्तदान समिति, नेहा मानव सोसाइटी, दरिद्र नारायण समिति देवभूमि ब्लड डोनर्स के तहत) महाविद्यालय में एनसीसी अधिकारी भी हैं,इनके लगभग 12 कैडेट्स विभिन्न सरकारी (पुलिस,वन विभाग,कृषि विभाग,aims) सेवाओं में कार्यरत हैं। 1 विद्यार्थी सहायक प्रोफेसर और 1 विद्यार्थी देश के प्रतिष्ठित संस्थान IIT में सेवाएं दे रहे हैं। हाल ही में इनको हिंदी काव्य रत्न की उपाधि (10 जनवरी) शब्द प्रतिभा बहुक्षेत्रीय सम्मान फाउंडेशन नेपाल द्वारा नवाजा गया है। राष्ट्रीय एकता अवार्ड 2024 (राष्ट्रीय सर्वधर्म समभाव मंच) ई– ०१ प्रोफेसर कॉलोनी राजकीय महाविद्यालय बिलासपुर हिमाचल प्रदेश पिन १७४००१ सचलभाष ९४१८३५३४६१

Leave a Reply