कविता

वफादार कुत्तों को बदनाम मत करो

अपने स्वार्थ में यूं कोहराम मत करो,
हम वफादार हैं,हमें बदनाम मत करो,

जंगलों में रहते थे, गर्मी-ठंडी सहते थे,
मगर,कभी मानव से दर्द नहीं कहते थे,

न वसई था,न मुलुंड था,हमारा अपना झुंड था,
जंगलों में भोजन था,पानी के लिए कुंड था,

तुम्हीं जंगल आए, हमें गांव लाए,
अपने हर गुण-अवगुण हमको सिखलाए,

जंगली से हम सब पालतू हो गए,
आदमी के साथ रहकर फालतू हो गए,

जंगल को त्यागकर तुम्हारे साथ ढलने लगे,
राजसी भोग छोड़कर कौरे पर पलने लगे,

कोई चोर आए तो मुझे दौरा देते थे,
पेटभर खाने वाले, हमें कौरा देते थे,

बागों में जाते थे, कुछ भी खाते थे,
मरे हुए पशुओं से भूख तक मिटाते थे,

तुम मनाते थे होली और दीवाली,
हम करते रहे,तुम्हारे घर की रखवाली,

जो सच्चे थे उनसे कोई बैर नहीं था,
लेकिन चोर-उचक्के तेरा खैर नहीं था,

आदमी कई बार गद्दार भी कहलाए,
मगर,कुत्ते हमेशा वफादार ही कहलाए,

खुद तो गल्ती कर मजा लूटते थे,
हमारी गलतियों पर जीभर कूटते थे,

तुम स्वामी थे,बॉस थे, भगवान थे,
हम मालिक के लिए निष्ठावान थे,

तुम अपनी गलतियां छुपाने लगे,
हम नए-नए मुहावरों में आने लगे,

एक तो मानव डंडे से हूल जाते हैं,
ऊपर से, कुत्ते ढाई परग में ही भूल जाते हैं,

बट्टा लगा दिया वफादारी व ठाट का,
धोबी का कुत्ता है घर का न घाट का,

कुत्तों पर लांछन लगाते हो तुम,
कुछ भी कर लो सीधी होगी न दुम,

दुनिया जानती है,हम कितने दिलेर होते हैं,
कुत्ते अपनी गली के ही शेर होते हैं,

हमारे बारे में ये क्या-क्या कह जाते हैं,
हाथी झूमता जाए,कुत्ते भौंकते रह जाते हैं,

कुत्तों के जैसे तुम वफादार नहीं थे,
आदमी के जैसे हम भी गद्दार नहीं थे,

चोर पकड़े,डकैत पकड़े, हत्यारे पकड़े,
तुम ही बताओ,किसके सहारे पकड़े?

बम पकड़े, बारूद पकड़े,चरस पकड़े,
पुलिस-सेना के साथ बरसों बरस पकड़े,

रक्षा की देश की, दुकान की,
किसानों के खेत व खलिहान की,

तभी तो कुत्ता होकर भी श्वान कहलाए,
वफादारों में सबसे महान कहलाए,

हमारे त्याग -समर्पण का क्या सिला दिया,
कुछ आवारा कुत्तों ने मिट्टी में मिला दिया,

हे मानव, तुम गगन का तारा नहीं हो,
हम आवारा हैं, क्या तुम आवारा नहीं हो?

भटके हुए इंसान,देशद्रोही बेइमान,
घुसपैठियों का करते हो जीभर गुणगान,

क्या तुम मानवता पर श्राप नहीं हो,
हम सड़कछाप हैं,क्या तुम सड़कछाप नहीं हो,

रोहिंग्या, बंग्लादेशी, पाकिस्तानी कुत्ते,
हमने तो देखे हजारों इंसानी कुत्ते,

कुत्तों ने कभी सच्चाई को नहीं कूटा,
हमने कभी देश को भी नहीं लूटा,

कुत्तई हो या स्वामिभक्ति, सबको तार गए,
तलुआ चाटने में हम आदमी से हार गए,

श्वान की खातिर, इंसान भरे-भरे हैं,
मालिक की खातिर हम कितनी बार मरे हैं,

हम दांत से काटते हैं,तुम तलवार से काटते हो,
फिर भी जज साहब,केवल कुत्तों को डाटते हो?

हमारे नाम पर एनजीओ खोलने वाले,
हमारी जिंदगी पर पैसे तोलने वाले,

ये मत समझना, इन्हें कुत्तों से प्यार है,
इनका तो करोड़ों-करोड़ों का व्यापार है,

मनुष्य को बचाओ, भाईचारा को जाने दो,
मानवाधिकार वाले नारा को जाने दो,

जैसे कुछ इंसान,भारत में भटक जाते हैं,
वैसे हम श्वान भी,कभी कभी सटक जाते हैं,

अब तो बंद करो अपनी दूकान को,
भटके हुए कुत्तों से बचा लो हिंदुस्तान को,

योर ऑनर आज सारे कानूनों को तोड़ दो,
हमें जंगल से लाए थे, फिर जंगल में छोड़ दो,

किसी शेल्टर होम का इंतजाम मत करो,
हम वफादार कुत्ते हैं, हमें बदनाम मत करो,

— सुरेश मिश्र

सुरेश मिश्र

हास्य कवि मो. 09869141831, 09619872154