कविता

मेरे शब्द

मेरे शब्द
बस कभी कभी हो जाते हैं ग़ुम कुछ अनजानी राहो में
यहां मैं तड़पता हूँ

वहां मेरे शब्द तडपते होंगे

शायद किसी की बाँहों में
लगता है कभी कभी मुझे ऐसा
की बीत जायगी सारी उम्र
यूँ ही भरते हुए आहो में
फिर भी न मिल पायेगी जगह
मुझके उनकी पनाहों में
बस मेरी तरह मेरे शब्द भी खो जाते हैं
कुछ अनजानी राहों मे

यूँ तो ज़िंदा थे
ज़िंदा हैं और रहेंगे
हस्ते हस्ते उनके हर सितम सहेंगे
क्योंकि जानता हु
प्यार वो पुष्प है
जिसने सुगंध देना सीखा है
लेने की न कभी
अभिलाषा रखेंगें
कर्तव्य पथ पर
प्रेम के पुष्प को
सिँचित करेंगे
और जीवन भर
प्रेम के इसी मार्ग को प्रशस्त करेंगे
लेकिन न चाहकर भी
हमको तो मार डाला उनकी कातिल निगाहों ने
बस मेरी तरह मेरे शब्द भी खो जाते हैं
कुछ अनजानी राहों मे

महेश कुमार माटा

नाम: महेश कुमार माटा निवास : RZ 48 SOUTH EXT PART 3, UTTAM NAGAR WEST, NEW DELHI 110059 कार्यालय:- Delhi District Court, Posted as "Judicial Assistant". मोबाइल: 09711782028 इ मेल :- [email protected]

One thought on “मेरे शब्द

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह !

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