फिर धरती हिली
धरती के अन्दर उदगार उठा
जिससे भू-पर्पटी हिलने लगा
आपसमें शोर हुआ चारों ओर
अफरा – तफरी मचने लगा
लोग मकानों से निकलकर
बन गये सब पथ के राही।
चर्चा विषय चहुओर बनाकर
भागे सवत्र जान बचाकर।
मच गया चारों तरफ हंगामा
चाहे नुक्कड़ हो या चौराहा
गाँव-गाँव हर गली -गली में
कई जगह हर शहर-शहर में
फिर भी ईश्वर की कैसी लिला है
क्षण भर में दुखित कर देता है
पलभर में प्रलय मचाकर यहाँ,
अपनी शक्ति का प्रमाण देता है
@रमेश कुमार सिंह /१२-०५-२०१५
सुंदर रचना है
अच्छी कविता. हमने पर्यावरण के साथ इतना और इतनी बार खिलवाड़ किया है कि अब प्रकृति इसे और अधिक झेलने को तैयार नहीं है.
जी श्रीमान जी बिलकुल सही धन्यवाद!!