सेदोका कविताएँ …
१
उड़ो परिंदे !
पा लो ऊँचे शिखर
छू लो चाँद -सितारे,
अर्ज़ हमारी-
इतना याद रहे
बस मर्याद रहे !
२
जो तुम दोगे
वही मैं लौटाऊँगी
रो दूँगी या गाऊँगी ,
तुम्हीं कहो न
बिन रस ,गागर
कैसे छलकाऊँगी ?
३
सज़ा दी मुझे
मेरा क्या था गुनाह
फिर मुझसे कहा
अरी कविता
गीत आशा के ही गा
तू भरना न आह !
४
आई जो भोर
बुझा दिए नभ ने
तारों के सारे दिए
संचित स्नेह
लुटाया धरा पर
किरणों से छूकर ।
५
मन -देहरी
आहट सी होती है
देखूँ, कौन बोलें हैं ?
आए हैं भाव
संग लिये कविता
मैंनें द्वार खोले हैं ।
६
अकेली चली
हवा मन उदास
कितनी दुखी हुई
साथी जो बने
चन्दन औ’ सुमन
सुगंध सखी हुई ।
७
मन से छुआ
अहसास से जाना
यूँ मैंने पहचाना
मिलोगे कभी
इसी आस जीकर
मुझको मिट जाना ।
८
बूँद-बूँद को
समेट कर देखा
सागर मिल गया
मैं सींच कर
खिला रही कलियाँ
चमन खिल गया ।
९
जीवन-रथ
विश्वास प्यार संग
चलते दो पहिये
समय -पथ
है सुगम ,दुखों की
बात ही क्या कहिए ।
१०
मेरे मोहना
उस पार ले चल
चलूँगी सँभलके
दे ज्ञान दृष्टि
मिटे अज्ञान सारा
ऐसे मुझे मोह ना ।
११
गीत बनेंगे
बस दो मीठे बोल,
सच्चे मीत बनेंगे
पथ में तेरे
उजियारे फैलाते
नन्हें दीप बनेंगे ।
ये लघु कवितायेँ अच्छी हैं. पढ़कर मन प्रसन्न हो गया.
आपकी प्रतिक्रिया सुखद एवं प्रेरक है ..
हृदय से धन्यवाद आपका !
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
जापान की ताँका शैली में आपकी सभी रचनाएँ प्रभावशाली हैं । इस ताँका की अभिव्यक्ति सराहनीय है-
मैं मृण्मयी हूँ /नेह से गूँथ कर/तुमने रचा,/अपना या पराया/अब क्या मेरा बचा |
विधा पर भी प्रकाश डालती आपकी प्रतिक्रिया अनमोल है मेरे लिए ,बहुत आभार , स्नेहाशीष रहे आपका !
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
सभी सेदोका मन को छू गए , लेकिन यह सेदोका बहुत भाया-
जो तुम दोगे
वही मैं लौटाऊँगी
रो दूँगी या गाऊँगी ,
तुम्हीं कहो न
बिन रस ,गागर
कैसे छलकाऊँगी
बहुत आभार आदरणीय !
सुन्दर कवितायेँ. शब्दों का चयन प्रशंसनीय है.
रचनाओं पर प्रेरक उपस्थिति के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीय ,इसी भाव की सदा आकांक्षा करती हूँ !
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा