ग़ज़ल : शबनम हो रहे हैं
नहीं मायूस अब हम हो रहे हैं.
हमारे अश्क शबनम हो रहे हैं.
ख़ुशी आँखों में जो देखी ग़मों ने,
दुखी हमसे बहुत ग़म हो रहे हैं.
उमंगें ले रहीं अँगड़ाइयाँ फिर,
ज़ुबाँ पर लफ़्ज़ सरगम हो रहे हैं.
ख़बर आई है उनके आगमन की,
यहाँ अनुकूल मौसम हो रहे हैं.
मिलन के बाद क्या होगा न जाने,
अभी से ख़्वाब परचम हो रहे हैं.
किसी का नाम हमने ले लिया बस,
बहुत नाराज़ हमदम हो रहे हैं.
डॉ.कमलेश द्विवेदी
कानपुर
मो.09415474674