कन्या भ्रूण-हत्या
मत मारो इन बच्चियों को, माँ कहाँ से पाओगे ।
मत तोड़ो इन कलियों को, फूल कहाँ से लाओगे।
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इनके मधूर-मुस्कानो से घर – आंगन गूँज उठती,
नहीं रहेंगी दुनियां में तो, ढुढने बहन कहाँ जाओगे।
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मम्मी – पापा कहते हुए तुम्हारे पास कौन आयेगी,
मुस्कुराती हुई बच्ची को, फिर कैसे खेलाओगे।
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रोते बिलखते ढुढते हुए कौन तु्म्हें पुकारेगी,
नहीं रहेगी यह बच्ची तो फिर किसको मनाओगे।
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हमारे बीच से यह गुड़िया, जब समाप्त हो जायेंगी,
तब एक दूजे के शादी में कैसे धुम-धाम मचायेंगे।
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मत करो कन्या भ्रूण हत्या, सृष्टि विलुप्त हो जायेगी
फलता – फूलता यह संसार फिर कहाँ से पाओगे।
______________रमेश कुमार सिंह /१६-०२-२०१६
प्रिय रमेश भाई जी, अति सुंदर व मार्मिक कविता के लिए आभार.
सराहना के लिए आभार आदरणीया!!