गीत/नवगीत

झांकी हिंदुस्तान की – भाग 2

 

कैसे बच्चों को दिखलाऊँ
झांकी हिंदुस्तान की
बन के आज तमाशा रह गई
धरती ये बलिदान की

कुछ तो करो शरम
कुछ तो करो शरम

कल तक जो थी देवीस्वरूपा
अब फैशन की मारी है
पुरूष भी भूला वफा की रस्में
वासना का वो पुजारी है
कौन निभाए संबंधों को
लालच सब पर भारी है
झूठ, फरेब का और धोखे का
खेल निरंतर जारी है
ढूँढे से भी कहीं मिलें ना
अब तो राम और जानकी
बन के आज तमाशा रह गई
धरती ये बलिदान की

कुछ तो करो शरम
कुछ तो करो शरम

मंदिर-मस्जिद के झगड़ों में
सारा प्यार मिटा डाला
इस सुंदर बगिया को हमने
खुद श्मशान बना डाला
अपने हाथों से ही अपनी
बुनियादों को हिला डाला
आग से खेलने की आदत ने
अपना घर ही जला डाला
एक सी इज्ज़त होती थी जहां
गीता और कुरान की
बन के आज तमाशा रह गई
धरती ये बलिदान की

कुछ तो करो शरम
कुछ तो करो शरम

कहीं रोज़ सजती है महफिल
छलके हुए प्याले हैं
कहीं बिलखते बच्चों को
दो रोटी के भी लाले हैं
उजले कपड़े पहनने वाले
मन के कितने काले हैं
अँधेरों के हाथों देखो
ज़ख्मी हुए उजाले हैं
भारत माँ भी आज रो रही
देख दशा संतान की
बन के आज तमाशा रह गई
धरती ये बलिदान की

कुछ तो करो शरम
कुछ तो करो शरम

कैसे बच्चों को दिखलाऊँ
झांकी हिंदुस्तान की
बन के आज तमाशा रह गई
धरती ये बलिदान की

कुछ तो करो शरम
कुछ तो करो शरम

— भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]

One thought on “झांकी हिंदुस्तान की – भाग 2

  • विजय कुमार सिंघल

    एक और करारी व्यंग्य कविता ! बधाई !!

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