ग़ज़ल
ग़जल की दास्तान तक चलिए ।
थोड़ी लम्बी उड़ान तक चलिए ।।
इस बुलन्दी में कुछ नहीं हासिल।
वक्त की हर ढलान तक चलिए।।
हया में कुछ न कह सकी मुझसे ।
उसकी ठहरी जबान तक चलिए ।।
धुएं में फ़िक्र को गर उड़ाना है ।
चिलम वाली दुकान तक चलिए ।।
कुछ तकल्लुफ से खौफ बरपा है ।
मैकदो मे ईमान तक चलिए ।।
देखनी गर तुझे तासीर ए लहर ।
नदी में भी उफान तक चलिए ।।
साजिशें मुल्क तोड़ देने की ।
दुश्मनों के मकान तक चलिए ।।
गर मिटाने का हौसला तुझमे ।
तो यहां खानदान तक चलिए ।।
सितम लहरों के रोकते जज्बे ।
लिए हसरत कटान तक चलिए ।।
पस्त होकर वो जान देता है ।
दर्दे मंजर किसान तक चलिए ।।
दौलत ए हिन्द के लुटेरे जो ।
उनके ऊंचे मचान तक चलिए ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी