कुछ दोहे
१-
महावीर औ बुद्ध का समझे नहीं जो मर्म
कर्म काण्ड को छोड़कर लेकर बैठे धर्म
२-
माई माई कर रहा ड्योढ़ी खड़ा फकीर
माई ने देखा नहीं उन अंखियन का नीर
३-
तुलसी ने मानस रचा नहीं लिखी यह पीर
कलजुग में उस राम पर निकलेंगी शमशीर
४-
सब हीरे बेमोल हैं वाकी जैसी पीर
प्रेम राग सबसे बड़ा कह गये संत कबीर
५-
टूटी फूटी झोपड़ी या महलों का जाल
मैंने तो समझा यही अंतर है बस काल
६-
जिस मन में रहता नहीं श्रद्धा रूपी न्यास
किंचित ना होता उसे प्यार भरा एहसास
७-
सीता संगी राम की घर हो या वनवास
इससे बढ़कर क्या मिले प्यार भरा एहसास
— मानस मिश्रा
आदरणीय मानस मिश्रा जी बहुत ही सटीक दोहे . बधाई आप को .
अच्छे दोहे !