गीत/नवगीत

भावना को बना आरती का दिया …

भावना को बना आरती का दिया तेरी, पूजा करुं है तमन्ना यही।
मन के मंदिर का तुमको बना देवता, तुमको सज़दा करुं है तमन्ना यही॥

धडकनों के स्वरों में तुम्हे साधकर, प्रीत नगमा बना गुनगुनाता रहूं।
तेरी सांसों से खुशबु चुराकर सनम, अपनी सांसो कों चंदन बनाता रहूं॥
तेरी चाहत को सपना बना कर धर्म, चाह तेरी करुं है तम्न्ना यही….
मन के मंदिर का तुमको बना देवता, तुमको सज़दा करुं है तमन्ना यही……

भावों की धूप से करके पावन ये मन, पुष्प अपनी वफा के चढाऊं सदा।
प्रीत रोली को अहसास में घोलकर, तेरे माथे पे टीका सजाऊं सदा॥
सोच में तुम रहो रूबरु तुम रहो, तुमपे जीऊं मरुं है तमन्ना यही…..
मन के मंदिर का तुमको बना देवता, तुमको सज़दा करुं है तमन्ना यही……

साधना से तुम्हारा हृदय साधकर, मांग लूंगा तुम्हें तुमसे अपने लिये।
पल रही है मेरी ज़िन्द्गी बस यही, आस पाले हुए मन में सपने लिये॥
धडकनों को मिले धडकनों की रृदम, प्यार को प्यार दूं है तमन्ना यही….
मन के मंदिर का तुमको बना देवता, तुमको सज़दा करुं है तमन्ना यही…..

तन बदन आत्मा सब तुम्हारे हुए, मैं तो बस एक परछाई हूं प्रीत की।
करके अर्पण तुम्हें अपनी ये जिन्दगी, राह हमने चुनी प्रीत की रीत की॥
तन भी तुम हो मेरा मन भी तुम हो मेरा, मैं को भी तुम करुं है तमन्ना यही…..
मन के मंदिर का तुमको बना देवता, तुमको सज़दा करुं है तमन्ना यही…..

सतीश बंसल तेरी, पूजा करुं है तमन्ना यही।
मन के मंदिर का तुमको बना देवता, तुमको सज़दा करुं है तमन्ना यही॥

धडकनों के स्वरों में तुम्हे साधकर, प्रीत नगमा बना गुनगुनाता रहूं।
तेरी सांसों से खुशबु चुराकर सनम, अपनी सांसो कों चंदन बनाता रहूं॥
तेरी चाहत को सपना बना कर धर्म, चाह तेरी करुं है तम्न्ना यही….
मन के मंदिर का तुमको बना देवता, तुमको सज़दा करुं है तमन्ना यही……

भावों की धूप से करके पावन ये मन, पुष्प अपनी वफा के चढाऊं सदा।
प्रीत रोली को अहसास में घोलकर, तेरे माथे पे टीका सजाऊं सदा॥
सोच में तुम रहो रूबरु तुम रहो, तुमपे जीऊं मरुं है तमन्ना यही…..
मन के मंदिर का तुमको बना देवता, तुमको सज़दा करुं है तमन्ना यही……

साधना से तुम्हारा हृदय साधकर, मांग लूंगा तुम्हें तुमसे अपने लिये।
पल रही है मेरी ज़िन्द्गी बस यही, आस पाले हुए मन में सपने लिये॥
धडकनों को मिले धडकनों की रृदम, प्यार को प्यार दूं है तमन्ना यही….
मन के मंदिर का तुमको बना देवता, तुमको सज़दा करुं है तमन्ना यही…..

तन बदन आत्मा सब तुम्हारे हुए, मैं तो बस एक परछाई हूं प्रीत की।
करके अर्पण तुम्हें अपनी ये जिन्दगी, राह हमने चुनी प्रीत की रीत की॥
तन भी तुम हो मेरा मन भी तुम हो मेरा, मैं को भी तुम करुं है तमन्ना यही…..
मन के मंदिर का तुमको बना देवता, तुमको सज़दा करुं है तमन्ना यही…..

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.