लघुकथा

लघुकथा : पैंतरा

बरामदे में लगे कैक्टस के पौधों को काटते देख रामलाल बोले, “बेटा इतने प्यार से लगाया था तुने। कहाँ-कहाँ से तो खोज कर लाया था दुर्लभ प्रजाति। अब क्यों काटकर फेंक रहा?? तू तो कहता था कि इन कैक्टस में सुंदर फूल उगते हैं? वो खूबसूरत फूल मैं भी देखना चाहता था।”
“हाँ बाबूजी, कहता था, पर फूल आने में समय लगता है परन्तु कांटे साथ-साथ ही रहते। आज नष्ट कर दूंगा इनको!”
“मगर क्यों बेटा?”
“क्योंकि बाबूजी, आपके पोते को इन कैक्टस के कांटो से चोट पहुँची है।”
“ओह, तब तो समाप्त ही कर दो! पर बेटा इसने अंदर तक जड़ पकड़ लिया है! ऊपर से काटने से कोई फायदा नही!”
“तो फिर क्या करूँ??”
“इसके लिए पूरी की पूरी मिट्टी बदलनी पड़ेंगी। और तो और इन्हें जहाँ कहीं भी फेंकोगे ये वहीँ जड़ जमा लेंगी।”
“मतलब इनसे छुटकारा पाने का कोई रास्ता नहीं?”
“है क्यों नहीं! बस धूप में तपा दो।”

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|