बाल कविता

दर्जी अकड़ा सुई से (बाल कविता)

दर्जी कहता सुई से

तू है कितनी छोटी

मैं हूँ, लम्बा चौड़ा दर्ज़ी

तू, नाप सके ना उतना

करता हूं मैं फिक्र तुम्हारी

तू है किस्मतवाली

इस घमंड में डूबा दर्जी

सुनती सुई बेचारी

मैं हूँ तेरा रखवाला

वगैर मेरे तू अपंग जैसा

मेरा ही तो हाथ पकड़कर

गिरी हुई तू उठकर चलती

साथ जो ना मैं तुझको देता

किसी कोने मे जंग खाती

मानना तू मेरा ये एहसान

करना ना कभी मुझे परेशान

आज तू खोयी है कहाँ

ढूँढ रहा तुझे इधर- उधर

तेरी पड़ी ज़रूरत मुझे

बिन तेरे है बिगड़े काम

जब ना होती तू मेरे पास

बिखर जाते है सारे दराज

क्यों उदास है मेरे यार

मिल जा मुझको एकबार

घात लगाए छुपी बैठी कहाँ

क्या लेगी मुझसे इंतकाम ?

चुभी तू ऐसे, मेरी उंगली में

किया जो मैंने तेरा अपमान

माफ कर दे मेरी यार

तूझे लगी शब्दों की मार

मैं हूँ, लंबा चौड़ा दर्जी

जिसका तूने खुन बहाया

समझ गया मैं तेरा इशारा

कोई बड़ा न कोई छोटा

सब है एक दूसरे के पूरक जैसा।

*बबली सिन्हा

गाज़ियाबाद (यूपी) मोबाइल- 9013965625, 9868103295 ईमेल- bablisinha911@gmail.com