गज़ल
खामोश रहते हैं किसी को कुछ ना कहते हैं,
ज़माने वाले फिर क्यों हमको बुरा कहते हैं,
मयार गिर गया है इस कदर यहाँ सबका,
बेहयाई को अब तो लोग अदा कहते हैं,
ज़ुबां से निकली हैै जो वो तो सिर्फ बातें हैं,
दिल से निकले जो उसको ही दुआ कहते हैं,
आजकल के नौजवानों को खबर ही नहीं,
हया क्या चीज़ है और किसको वफा कहते हैं,
ये आवारगी, रूसवाइयां, ये तनहाई,
क्या इसे ही मुहब्बत का सिला कहते हैं,
उसी को देख कर जीते हैं जिसपे मरते हैं,
उसे ही ज़हर और उसे ही दवा कहते हैं,
आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।