“दोहा”
बुरा न मानों होली है…..रंग गुलाल रंगोली है…….
होली होली सब कहें, होली किसके साथ
हाथी चली न सायकल, रास न आया हाथ।।-1
कमल खिला बेपात का, चारो ओर विकास
केशरिया मन भा गया, चौथेपन सन्यास।।-2
जनता कबतक देखती, तेरा मेरा खेल
मान लिया धन एक है, नौ नौ गिनती फेल।।-3
सम्प्रदाय किसको कहें, किसको कहें समाज
सबकी रोटी सिक रही, अपने चुल्हा राज।।-4
जात पात नहीं पुछते, नाव छाँव अरु गाँव
एक साथ सब बैठते, घेरे ठण्ड अलाव।।-5
बाँट बाँट कर आँगना, ड्योढ़ी दर दिवार
कबतक छल तराएगा, डुबों अपने भार।।-6
आओ अब खेलन चलें, भर पिचकारी फाग
जीत हार तो हो गई, अब चौताली राग।।-7
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी