पैबंद
फिर मैं उनकी बात पर यकीन रखकर पेबंद लगाई हुई हाफ पेंट पहनकर स्कूल चला जाता था ।
दो दिन से स्कूटी बंद हो गई थी । बेटी ने अपनी माँ से कहा था कि मैं पैदल स्कूल कैसे जाऊँ ? पापा को वक्त ही नहीं मिलता । उसकी माँ ने मुझे कहा भी, कुछ करो । आज स्कूटी की चाबी बेटी के हाथों में थमाते हुए मैंने उसके चेहरे को देखा । वो बहुत खुश थी और स्कूल जाने के लिए उत्साह भी था ।
कितना फर्क हो गया है दो पीढीयों के बीच ! मगर यही सत्य है उसे स्वीकार करना होगा । यही सोचता हूँ मैं आँगन में रहे झूले पे बैठा हुआ खुद में खुद की तलाश करता हुआ । और… लगता है, दो पीढ़ियों के बीच हम भी लगा रहे हैं कहीं न कहीं पैबंद !