“क़ता”
बह्र- 2221 2221 2221 212, काफ़िया-अते, रदीफ़- आर में
हम भी आ नहीं पाए तिरे खिलते बहार में
तुम भी तो नहीं आए मिरे फलते गुबार में
इक पल को ठहर जाते कभी तुम भी पुकार कर
तो शिकवा न करती डगर बढ़ी ढ़लते किनार में॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
बह्र- 2221 2221 2221 212, काफ़िया-अते, रदीफ़- आर में
हम भी आ नहीं पाए तिरे खिलते बहार में
तुम भी तो नहीं आए मिरे फलते गुबार में
इक पल को ठहर जाते कभी तुम भी पुकार कर
तो शिकवा न करती डगर बढ़ी ढ़लते किनार में॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी