गीतिका/ग़ज़ल

“गीतिका”

आधार छंद- लावणी (मापनीमुक्त) विधान- 30 मात्रा, 16,14 पर यति, अंत में वाचिक गुरु। समांत – आता, <> पदांत- है

चलो दशहरा पर्व मनाए, प्रति वर्ष यह आता है

दे जाता है नई उमंगे, रावण को मरवाता है

हम भी मेले में खो जाएँ, तकते हुए दशानन को

आग लगा के वापस आएँ, हनुमत हिम्मत दाता हैं।।

महँगी हुई मिठाई लगती, मच्छर माछी भिनक रहे

नौ मन का अरमान तौलना, गुड़ का लड्डू भाता है।।

धुला धुला के फटते कपड़े, कॉलर की परवाह कहाँ

दरजी मापे कुरता किसका, कतरन रंग सुहाता है।।

साफ करूँ घर रोज दिवाली, फिर भी मैल नहीं जाती

रगड़ रगड़ के एंडी धोते, पाँव बिवाई नाता है।।

आँखों में पानी भर जाता, सूखी बच्चों की जिह्वा

होठ गुलाबी रस चटकारे, कैसा भाग विधाता है।।

‘गौतम’ विजय सत्य की होती, रावण को हँसते देखा

इसी जगह फिर मेला होगा, जहाँ मोम जल जाता है।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ